महेश कुशवंश

5 जनवरी 2015

बिलकुल चुप



बचपन में नहीं
प्रथम  बार
कोख में ही हुआ 
बलात्कार  
जब दुत्कार दिया गया
मुझे
एक  डाक्टर के  मेरा भ्रूण घोषित करने पर
माँ  को छोड़ कर 
बंद कर लिए सारे  दरवाजे 
भ्रूण हत्या को नहीं मानी थी वो
दरवाजे  तभी खुले जब मैं
नानी के यहाँ
पली बढ़ीं और माँ
एक भाई पैदा करने ससुराल चली गयी
एक भाई को तरसते
मेरे पापा
न जाने कब मेरे माँ से
नाता तोड़ गए
और मेरी सौतेली माँ ले आए
सौतेली माँ के भी
दो लड़कियां हुयी
मेरे माँ ने एक बहु-रास्ट्री कंपनी मे
नौकरी कर ली
और सर्वोच्च शिखर पर बैठ गई
मैंने प्रशाशनिक नियति बनाई
और पापा के जिले की कमान सम्हाल ली
मेरी सौतेली माँ मुझसे
कभी नहीं मिली
मगर सौतेली बहने न जाने कहा से
ढूंढ कर मुझसे आ मिली
और मुझे आदर्श मानने लगी
मेरे माँ ने
दोनों बहनों को अपनी कंपनी मे
ऊंची जगह दी
मेरे पापा एक ब्रांड के लिए
साबुन बनाते थे
वो ब्रांड फेल होगया
और पापा भी
मगर वो मेरे पास कभी नहीं आए
हा ... कभी कभी उनकी गाड़ी आती थी
रात मे नौ बजे के आस-पास
मेरे दरवाजे रुकती
संतरी से पूंछते...मेम साहब है
और चले जाते
मैं दूर खिड़की पर उन्हे जाते हुये देखती
लैम्प पोस्ट की रोशनी मे
मैं पहचान जाती थी
गाड़ी मे सौतेली माँ भी होती थी
मेरी माँ , आफिस मे शशक्त प्रशाषक
बुझी बुझी सी रहने लगी थी
मैं उन्हे हस्ते खिलखिलाते
देखना चाहती थी
मगर वो न कभी हंस पायी
एक दिन सब्र का बांध टूट गया
मेरे पास पापा का फोन आया
पापा की थरथराई आवाज़ थी
बेटी मुझे माफ कर दो
और अपनी माँ से भी कहना
हो सके तो मुझे माफ कर दे
और फोने रख दिया गया
मैंने माँ की पथराई आँखों मे देखा
मानो कह रहीं हो ....
मैंने उन्हे माफ कर दिया ....
तू भी माफ कर दे
वाह माँ ... तू भी न
जीवन परयंत झेलती रही दंश
इतनी आसानी से भुला देना चाहती हो
मगर मैं कैसे भुला दू वो लोरिया
वो न मिली पापा की पीठ
वो उंगली की पकड़
मैं  , मेरे बहने , मेरी माँ   और वो पापा का फोन
चुप थे ...... बिलकुल चुप

-कुशवंश




3 टिप्‍पणियां:

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-कुश्वंश

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