महेश कुशवंश

10 अप्रैल 2013

कोई दावा नहीं....



कोई
दावा नहीं
याद नहीं 
टूटे सपनों की कोई 
मुराद नहीं 
सोचते थे 
पैरों की  जमीन है बाकी 
बिखरे रिश्तों में
कहीं कोई महक 
है शाकी 
आँधियों में भी जो 
जलता रहा 
सम्बन्ध, दिया 
अंधेरों में भी जो 
भटका नहीं 
जुगनूं सा जिया 
सोचता हूँ
कोई और जहां 
तलाश करू
जा के कहीं और किसी  कन्दिरा  
निवास  करू
जितना भी चाहूं 
नया दौर
यहाँ , वहाँ
जहां से बाहर
नक्षत्रों में भी  नहीं अब
कोई पनाह
तुम मुझे चाह लो,  फिर से
इसकी बची  नहीं
उम्मीद
अब तो किसी से  भी कोई
कैसी भी
फ़रयाद नहीं


22 टिप्‍पणियां:

  1. बहु खूब . सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . बधाई .

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  2. टूटे सपनों की कोई मुराद नहीं,बहुत ही सुन्दर प्रभावी कविता है आदरणीय.

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  3. बहुत गहन भाव लिए रचना....

    सादर
    अनु

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  4. सपने जब टूट जाते हैं ... कोई फ़रियाद या उम्मीद नज़र नहीं आती ...
    गहन भाव ...

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  5. तुम मुझे चाह लो, फिर से
    इसकी बची नहीं
    उम्मीद
    अब तो किसी से भी कोई
    कैसी भी
    फ़रयाद नहीं___
    बहुत गहन भाव लिए रचना
    LATEST POSTसपना और तुम

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर भावमयी रचना...

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  7. आज 15/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. दावा नहीं
    याद नहीं
    टूटे सपनों की कोई
    मुराद नहीं
    सोचते थे
    पैरों की जमीन है बाकी
    बिखरे रिश्तों में
    कहीं कोई महक
    है शाकी
    शब्दों में गूंथी अच्छी भावपूर्ण रचना. बधाई

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  9. बेहद सुन्दर रचना | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
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  10. भावमय करते शब्‍दों का संगम....

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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