महेश कुशवंश

5 जनवरी 2015

अपना अपना रंग




अंग्रेजी में  पढ़े  बढे हम
हिंदी हमें नहीं आती 
भाषा की कैसी परिभाषा 
फूटी आँख नहीं भाती 
मम्मी पापा, माम डैड  हैं 
दादा-दादी  ग्रांड 
भैया मेरे नंबर वन हैं 
लगते जेम्स बांड 
दीदी जब कालेज से  आती  
ऐसे  करती एक्शन 
जैसे वो मस्ती चैनल में 
करती जैनेट जैक्शन 
मम्मी हाय हैलो में रमती 
पापा क्लब में बंद 
भैया दीदी पब में जाते 
मन में अन्तर्द्वन्द 
कहाँ गए रावन  के राम 
कहाँ गयी सीता माता 
कहाँ गए राधा और कृष्ण 
कैसे टूट गया नाता 
राम लीला  में मेला देखो 
दीवाली में झालर 
होली मे रंग बिरंगे होकर
कर लो  मैली चादर
दीदी लीविन रेलशन मे हैं
भैया हुये दबंग
मम्मी पापा अलग अलग हैं
अपना अपना रंग
कैसा समाज बनाएँगे हम
नहीं समझ मे आता
संस्कृति और सभ्यता से
नहीं रहा कोई नाता
कितने ही कागज रंग डालो
तोड़ो कई कलम
राम रहीम की वाणी मे अब
नही रहा कोई दम
क्या क्या तुम्हें बताए मित्रो
कैसे कैसे खेल
कांटे वाले पेड़ पे चढ़ गई
मनी प्लांट की बेल

-कुशवंश

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