महेश कुशवंश

2 जनवरी 2015

पी ..... के

पी ..... के

कौन आया पी.....के
कौन नहीं
हमे नहीं पता
हम तो रात भर मुह सूंघते सूंघते
टुन्न हो गए
और कप्तान साहब ने  जैसे ही
हमारा मुह सूंघा
उनके शरीर मे करेंट दौड़ गया
और हमे 440 वोल्ट का झटका लग गया
अगले ही क्षण हम
लाइन हाजिर हो गए
लाइन मे और भी थे
नववर्ष मे टुन्न
हम रह गए सन्न
देखा लाइन मे रंगारंग कार्यक्रम था
सुल्ताना डाकू नौटंकी की  थाप मे
मुंडा बदनाम हुआ पर
रूमाल मुह मे दबाये कई साहब
कमर मटका रहे थे
हमने सोचा हमारी तो लाटरी निकाल आई
काम न धाम
मौज और आराम
रात भर बड़े आराम से गुजरी
जब खुमारी उतरी तो घर याद आया
घर मे इंतज़ार करते बच्चे याद आए
जो साँझ भर
नववर्ष मे बात जोहते रहे
पापा कब आएंगे
आज तो गाजर का हलुआ जरूर लाएँगे
हर साल भी तो लाते थे
तभी तो हम
नववर्ष मानते थे
बीमार पत्नी याद आई
बूढ़ी माँ याद आई
खाँसते बाबा याद आए
और याद आई घंटाघर चौराहे की रात
नववर्ष की पूर्वसंध्या की रात
नववर्ष का सूरज तो
रात के बाद ही उगेगा न .......


-कुशवंश

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर और बढ़िया रचना। आभार। आपको सपरिवार नववर्ष 2015 की हार्दिक शुभकामनाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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  2. बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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