महेश कुशवंश

14 फ़रवरी 2014

बिखरे प्यार तमाम



तुम हंसी
भौरो का 
अन्तर्मन हंसा
याद आई साँझ की 
स्पर्श माला
तुम मुस्कुरायीं
कलियों खिलीं
फूलों की पंखुड़िया
कहीं पलकों पर 
फिर से आ गिरीं
सुर्ख होंठों ने कहा
कौन हो तुम
प्यार के 
अद्भुत सफर मे
मौन हो
आज तो सारा जहां
मदहोश है
प्यार की आशा पर बस
खामोश है
चाद तारे 
जमीन पर बिखरे पड़े है
फूल, सूरज, नयन , गेशू
सब डरे हैं
आओ बढ़कर
गोधुली का अब
मौन तोड़ो
अपभ्रंश होते शब्द का अब 
मोह छोड़ो
मीरा बनो
राधा बनो
बनो कृष्ण और राम
वैलेंटाइन शब्द के बदले
बिखरे प्यार तमाम

-कुशवंश'


8 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम दिवस पर बहुत सुन्दर रचना...
    http://mauryareena.blogspot.in/
    :-)

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  2. बहुत सुन्दर ....वैलेंटाइन के बदले 'प्रणय दिवस ' मनाएं l
    NEW POST बनो धरती का हमराज !

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  3. प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......

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  4. वाह ! प्यार ही प्यार बिखरा हुआ है ! सुन्दर रचना .

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  5. प्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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