तुम हंसी
भौरो का
अन्तर्मन हंसा
याद आई साँझ की
स्पर्श माला
तुम मुस्कुरायीं
कलियों खिलीं
फूलों की पंखुड़िया
कहीं पलकों पर
फिर से आ गिरीं
सुर्ख होंठों ने कहा
कौन हो तुम
प्यार के
अद्भुत सफर मे
मौन हो
आज तो सारा जहां
मदहोश है
प्यार की आशा पर बस
खामोश है
चाद तारे
जमीन पर बिखरे पड़े है
फूल, सूरज, नयन , गेशू
सब डरे हैं
आओ बढ़कर
गोधुली का अब
मौन तोड़ो
अपभ्रंश होते शब्द का अब
मोह छोड़ो
मीरा बनो
राधा बनो
बनो कृष्ण और राम
वैलेंटाइन शब्द के बदले
बिखरे प्यार तमाम
-कुशवंश'
प्रेम दिवस पर बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंhttp://mauryareena.blogspot.in/
:-)
सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....वैलेंटाइन के बदले 'प्रणय दिवस ' मनाएं l
जवाब देंहटाएंNEW POST बनो धरती का हमराज !
प्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......
जवाब देंहटाएंवाह ! प्यार ही प्यार बिखरा हुआ है ! सुन्दर रचना .
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय अभिव्यक्ति ....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
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