महेश कुशवंश

14 अक्तूबर 2013

विजय दशमी ...

विजय दशमी ...


कल फिर एक बार
रावण मर गया
श्री राम की जीत हुयी
सीता माता अपने श्री राम से मिलीं
विभीषण को लंका का राज्याभिषेक
श्री राम का बनवास हुआ  पूरा
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री  राम की जय
अमर्यादित लंका दरबार
जल कर राख़
यही तो है न सारी कथा
साधारण सी
हम इसे भी नहीं समझ पाये
कौन हैं  श्री राम तो जान गए
क्या है श्री  राम
कितने जान पाये
क्या है श्री राम संस्कृति
क्या है श्री राम आचरण
और उससे भी अलग
क्या है
श्री राम का  मर्यादापुरुषोतमत्व
चीख चीख कर चिल्लाते रहे
राम लीला के पंडाल
हम आतिशबाज़ी और पुतला दहन मे विलीन रहे
कुछ खरीदते रहे
बच्चों के लिए बैलून
कुछ धनुषबाण
खाते रहे मेले की चाट
टूँगते रहे पापकार्न
तब तक
जब तक धूँ धूँ कर नहीं जल गया
दसकंधर
मेला छूटा
अनियंत्रित भीड़
अनियंत्रित धुआँ
अनियंत्रित ,  अमर्यादित आचरण
मेला पंडाल से घरों तक
सब कुछ अनियंत्रित .......सिर्फ अनियंत्रित
दशहरा आया और
चला गया
फिर कुछ सवाल छोड़ कर
जेहन मे डूबते उतराते सवाल ...... सिर्फ सवाल ।

3 टिप्‍पणियां:

  1. ये सवाल हर वर्ष अनुत्तरित रह जाते है ......

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  2. "सवाल" जिनसे हम मुंह मोड़ लेते हैं

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  3. बेहद सुंदर और प्रासंगिक रचना...काफी कुछ विचारने पे मजबूर करती हुई।।।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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