महेश कुशवंश

18 अगस्त 2013

पंद्रह अगस्त


लाल किले की प्राचीर  से
सपने संजोता  देश
छोटे -छोटे झंडो से
छोटी छोटी खुशियों को समेटने
उद्यम करते
नन्हें हाथ
बैलगाड़ी में  बैल बना
श्रम  बिंदु  बिखेरता
इक्कीसवी  सदी  का  मानव
गाव की गलियों से
गिरता पड़ता
कीचड सना  घर पहुचता
अन्नदाता  किसान
बरसात की बाढ़ में भी
सूखे पड़े
इंडिया मार्का  हैंडपंप
प्रदेश के माध्यमिक पास
ब्राडबैंड  कनेक्सन के लिए
चेन लूटते 
लैप्टापी बेरोजगार
बच्चियों  की अस्मत बचाने
और लुटेरों को सज़ा  दिलाने
इंतज़ार करते
कोर्ट के चक्कार लगाते 
माँ बाप
इसकी उसकी टोपी उतारते
कानून से बचने को
किसी  भी हद तक जाते
हमारे आपके  जनप्रतिनिधि
स्वतन्त्रता दिवस
फिर गुज़र गया
प्रभात  फेरी में बच्चे
गाते रहे
भारत माता की जय
और खाते रहे
मोतीचूर के लड्डू
और हम
मेढक और काक्रोच की
आदते पहचानते रहे। …

4 टिप्‍पणियां:

  1. बेशक मन में अंधियारे का सोच यहाँ पर छाया है,
    पर न भूले हर दिन सूरज नया सवेरा लाया है।।

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  2. उत्थान और पतन ,रात और दिन की भांति चक्र में घूमता है . अभी भारत सामाजिक ,राजनैतिक पतनोन्मुख है पर परिवर्तन होगा.
    atest post नए मेहमान

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  3. बहुत ही सुंदर सार्थक और बेहतरीन प्रस्तुती, आभार।

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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