रात थी
चांदनी थी
तन्हाइयां थीं
मन में कुछ उलझी हुयी
रुशवाइया थीं
रास्ते कुछ हो गए थे
पत्थरों से
जंगलों में
पेड़ पर
हिलते घरों से
सूर्य को डूबे हुए
लम्हा हुआ था
गोधूलि में भी आसमा
तनहा हुआ था
छीलती जो
पीठ को
करती रक्तरंजित
पास में लेटी हुयी
अंगडाइयां थीं
खाइयों में गिर रहा
मेरा शहर
झाँक कर देखा
बहुत गहराइयां थीं
रात थी
चांदनी थीं
तन्हाइयां थीं ..
मन में कुछ उलझी हुयी
रुशवाइया थीं
.........................?
चांदनी थी
तन्हाइयां थीं
मन में कुछ उलझी हुयी
रुशवाइया थीं
रास्ते कुछ हो गए थे
पत्थरों से
जंगलों में
पेड़ पर
हिलते घरों से
सूर्य को डूबे हुए
लम्हा हुआ था
गोधूलि में भी आसमा
तनहा हुआ था
छीलती जो
पीठ को
करती रक्तरंजित
पास में लेटी हुयी
अंगडाइयां थीं
खाइयों में गिर रहा
मेरा शहर
झाँक कर देखा
बहुत गहराइयां थीं
रात थी
चांदनी थीं
तन्हाइयां थीं ..
मन में कुछ उलझी हुयी
रुशवाइया थीं
.........................?
बहुत भावपूर्ण रचना है |सुन्दर शब्द चयन |
जवाब देंहटाएंआशा
बढ़िया प्रस्तुति ॥
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंभावनात्मक रचना
जवाब देंहटाएंखाइयों में गिर रहा
जवाब देंहटाएंमेरा शहर
झाँक कर देखा
बहुत गहराइयां थीं
विचारणीय एवं भावपूर्ण
अर्थपूर्ण भाव...... परिवेश से मन भी जुड़ा होता है.....
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भावों को सँजोया है रचना में बहुत मार्मिक हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर कुश्वंश जी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंकौन नापे ...उलझी रुस्वाई.मन की गहराई !
संवेदनशील भाव लिए भावपूर्ण रचना...
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