महेश कुशवंश

7 मार्च 2013

मेरा शहर


मेरा शहर बदलेगा क्या ?
बेतहाशा भागती
हांफती
वर्जनाएं तोडती
अनियंत्रित भीड़,
कभी दायें
कभी बाएं
कभी आपके बीच से
तेज रफ़्तार
दिग्भ्रमित
वर्तमान में भविष्य तलासते युवा ...,
क्षत विक्षत सड़कों में दबे
शहरी विकास  के ब्लूप्रिंट,
भारी  भरकम
सभ्यता के बोझ तले  दबी
धार्मिकता,
पाप पुण्य के
हिसाब किताब से बेखबर
मुह चुराते
कण-कण में विराजित
भगवान् के अवतार,
धर्म के
तथाकथित ठेकेदार
और इन सब के बीच कराहती
सड़क के सिरे पर पडी
मानवीयता
जिसे अभी-अभी कोई मारकर  फेंक गया
असुरक्षा और
मानवीय सडांध का अभ्यस्त
मेरा शहर
कभी बदलेगा क्या ?
और मेरा ही क्यों
आपका बदल गया क्या ?
अगर हाँ ...
तो मुझे बताना ..
कैसे बदला ......
    

7 टिप्‍पणियां:

  1. shahr ko badal pana behad mushkil hai...sookshm nirikshan ke liye aapki lekhani ko salaam...

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  2. आज के हालात पर सार्थक लेखन

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  3. आज के यथार्थ की बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

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  4. शायद मानवता का पुनर्जन्म हो जाये और बदल जाये यह शहर भी ... वर्तमान परिस्थितियों का सटीक विवेचन...आभार...

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  5. आजकल की कश-म-कश का बखूबी चित्रण किया है, बहुत खूब ........

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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