महेश कुशवंश

14 मार्च 2013

मैं तुमसे प्यार करती हूँ ....




एक अबोध 
दुसरे अबोध को देखकर 
उसके पास  आता है 
उसे हाँथ से खीच कर 
अपने पास 
बुलाना चाहता है 
और खुश हो जाते हैं हम 
उस  अबोध प्रेम पर 
ताली बजा कर हँसते हैं
............................ 
वो बड़ा होता है 
उस सहपाठी को 
अपनी पेन्सिल देकर 
उसकी बदल लाता है  
अबोध स्नेह
पींगें  भरता है 
समय और आगे बढ़ता है 
टीनेजर एक सामूहिक नृत्य में 
पति पत्नी की मुद्रा मैं है 
सारा हाल तालियों से गूँज जाता है 
उन्हें  एक साथ 
प्रथम पुरस्कार  मिलता है 
दोनों  कालेज में  लेते हैं  प्रवेश 
और आपस में  नहीं करते
कोई बात 
समय बीतता है 
उसे बेस्ट  स्टूडेंट से नवाज जाता है 
और मिलता है 
एक बड़े संस्थान में प्रवेश भी 
वो  बनता है 
स्टूडेंट यूनियन  का  अध्यक्ष 
और कालांतर में 
राजनैतिक  कद्दावर
राजनीती और जवान होती है  
और एक दिन 
उसके बदरंग साथी 
सड़क से उठा लाते है  उसे 
अंजाम देते है सामूहिक बलात्कार 
वो थाणे में निर्भीकता से 
लेती है उसका नाम 
न्याय का चक्र चलता है 
लोग उतर आते है सड़कों पर 
मीडिया आसमान सर पे उठा लेते है 
एक दिन उसके पिता 
उसके सामने रख देते है उसकी डायरी का पन्ना 
जिसमे उजागर करता है वो 
एकतरफा प्यार 
अनकहा 
वो मुकदमा वापसी को तैयार होती है 
मगर वो 
अचानक कही गायब हो जाता है 
और फिर कभी नहीं दिखता 
समय बीतता है 
शहर में प्रकट होते है 
बड़ी दाढी और नीले  वस्त्रों में 
प्रेम से सराबोर एक महापुरुष 
सब उन्हे चमत्कारी कहते है
वो कहते है 
मैं प्रेम बाटने आया हूँ  
मगर वो पहचान लेती है 
और उस बलात्कारी के शहर को छोड़ कर 
दुसरे शहर चली जाती है 
उन थपेड़ों से बचने 
जो उसे वक्त ने दिए थे ..
जो उसके लिए कभी नहीं थे 
कभी भी नहीं थे .







8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  2. मुखौटे लगे चेहरे ...
    बढ़िया अभिव्यक्ति !

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  3. बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...

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  4. मन को छूटा है आपका शब्द चित्र ...
    लाजवाब ...

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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