महेश कुशवंश

22 फ़रवरी 2013

हम कितने भूंखे है


हम कितने भूंखे है
हमारी भूंख को
कौन सा सोपान चाहिए
इस भूंख को
क्या नाम चाहिए
सुख
सत्ता
सम्रधता
या फिर कुछ और
सड़कों पर  मीलों तक  बिखरे पड़े 
मानव शरीर के चीथड़े, 
फुहार बनकर
रक्त के छीटों से सनी दीवारें  
न जाने कितनों के मुह पर
इन बेजुबानों के रक्त के छींटे
बिखरे हैं 
साईकिल  के कल पुर्जों  से  तितर बितर 
और समेटने को 
लटके मुह  लिए 
आंशुओं से परिपूरित कई राजनीतिक पार्टियाँ 
मानवाधिकार की बात करते 
खंडित चेहरे लिए  समाज सेवी 
हमें और कितना रक्त रंजित करेंगे 
कौन सज्ञान लेगा 
कोई रक्त उबलेगा क्या ?
रक्त पर   कितनी  हांडियां और चढ़ेगी 
और कब तक 
यूं ही बिखरेंगी  संवेदनाये 
करुण क्रंदन से बहरे हुए कानों में 
कब तक पड़ा रहेगा पिघला शीसा 
कब तक ..
न जाने कब तक ..

15 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शनिवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. न जाने कब तक ये सब होता रहेगा ... मार्मिक प्रस्तुति

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  3. इसका अंत करने के लिये जन-जन को सक्रिय होना पड़ेगा!

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  4. मार्मिक भावनात्मक प्रस्तुति !!

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  5. आज की ब्लॉग बुलेटिन ऐसे ऐसे कैसे कैसे !!! मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  6. जाने कब तक झेलेंगे ये सब हम...

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  7. कल २४/०२/२०१३ को आपकी यह पोस्ट Bulletin of Blog पर लिंक की गयी हैं | आपके सुझावों का स्वागत है | धन्यवाद!

    सुन्दर प्रस्तुति | आभार

    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  8. भावात्मक एवं मार्मिक प्रस्तुतीकरण,आभार.

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  9. सुन्दर अभिव्यक्ति। आप जैसे लोगो के कारण ही ब्लॉग को अभिव्यक्ति के सशक्त मंच का दर्जा प्राप्त हुआ है। धन्यवाद।

    नया लेख :- पुण्यतिथि : पं . अमृतलाल नागर

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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