वर्षा की बूंदे
खिड़की खोलते ही
फुहारे सा भिगो देती हैं
कडकडाती बिजली
अँधेरे में खीच देती है
चमकती रेखा
दूर तक
अँधेरे में गूंजती है
झींगुरों की आवाज़
आसमान में है
गहरा अन्धेरा
मैं खिड़की बंद करना चाहता हूँ
अँधेरे से डरकर
सामने फ्लैट की खुली खिड़कियाँ
मेरे मन की खिड़की खोल देती है
एक खिड़की में खडी है
वो लडकी
जिसकी आये दिन लगती है नुमाइश
और दूसरी में
उसका पिता
जिसके कानों में गूंजती रहती है हमेशा बराती बैंड की आवाज़
मेरी पराशक्ति
जो ले सकती है किसी के भी मन की थाह
मुझे उस पिता तक पहुचाती है
...
कितने कमीने है लोग
सब कुछ तय हो जाने के बाद भी
मुकर जाते है
कुछ और की चाह में
मैं
एक बेटी का पति न तलाश सका
और वो बगली फ्लैट वाले
पांच लड़कियों को विदा कर
पार्टियों में मस्त है
ईर्ष्या में काले हो रहे दिल का क्या करैं
कौन सा सुकून तलासे .
उधर दूसरी खिड़की में
मैं लडकी के मन की थाह लेने लगता हूँ
वो सामने वाले अंकल कितने अमीर हैं
उनका बेटा छोटे से ही
चला रहा है बाइक ..
वो बदसूरत सी अनटी
जब बनठन के निकलती है
तो मेरी खूबसूरत मम्मी से
कही अच्छी लगती है
काश .......
मैं उनकी बेटी होती ..
या फिर उनके घर
मिल जाती मुझे ससुराल ..
...
तभी कडकडाती है बिजली ..
और होने लगती है
मूसलाधार बारिश
मैं देखता हूँ एक पूरा परिवार
सब्जी के ठेले पर
पालीथीन ओढ़े
बारिश से बचने की कोशिश करते हुए ..
पानी की बौछारें
घर में घुसने लगती हैं
मैं खिड़की बंद कर लेता हूँ ..
घर की भी और
मन की भी ...
हत भाग्य इस देश का इसकी गरीब बेटियों का जहाँ दोहरी मानसिकता वाले लोग घूमते रहते हैं दूसरी और दहेज के लोलुप भेड़िये ,
जवाब देंहटाएंसब की बेटियाँ हैं पर अपनी बेटी के लिए अलग सोच दूसरी के लिए अलग सोच दिल फटता है ये सब देख् कर पर मेरा कहना है कि हमें जाग्रति की खिड़की खोलनी चाहिए बहुत अच्छे मुद्दे पर बेहतरीन शब्द दिए हैं आपने वाह बहुत अच्छा लिखा बधाई आपको कुश्वंश जी
अपनी दुनिया से हट कर एक सच ये भी है जो आपने लिखा है
जवाब देंहटाएंघर में घुसने लगती हैं
जवाब देंहटाएंमैं खिड़की बंद कर लेता हूँ ..
घर की भी और
मन की भी ...
.........बेहतरीन रचना देने के लिए आभार
बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ !!!
जवाब देंहटाएंएक ही परिस्थिति ....पर सोच अलग अलग ... सच को कहती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंअपनी सोच और सामने की सोच में बहुत फर्क होता है
जवाब देंहटाएंजाकी रही भावना जैसी-
जवाब देंहटाएंसादर नमन ।।
बहुत संवेदनशील प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंLatest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !
मैं खिड़की बंद कर लेता हूँ ..
जवाब देंहटाएंघर की भी और
मन की भी ...
अलग अलग दुनिया के रूप ...दुख तो देते ही हैं ...
संवेदनशील रचना ...!!
शुभकामनायें ।
एक खिड़की से कितनी बड़ी दुनिया देख ली आपने..सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंएक खिड़की से कितनी बड़ी दुनिया देख ली आपने..सुन्दर प्रस्तुति...
कोमल भावो की अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना | अतीव मनमोहक एवं विचारणीय.....!
जवाब देंहटाएंTamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
बहुत प्रभावी करता उद्वेलन .......
जवाब देंहटाएंbehtareen bhaav...
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसंवदनशील मन की एक रचना ..
जवाब देंहटाएंबधाई !
सम्वेदना का झर झर बहता निर्झर क्या क्या न कह गया....बधाई
जवाब देंहटाएंवहा वहा क्या बात है
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
प्रेमविरह
एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ
दुनिया के कई रूप... कई बार लगता है की सभी दरवाज़े बंद कर पूरी दुनिया से दूर हुआ जा सकता है, पर बंद दरवाज़े में भी अपनी आत्मा... बहुत अच्छी रचना, बधाई.
जवाब देंहटाएं