महेश कुशवंश

22 जनवरी 2013

काश ! हम जी रहे होते....



काश ! हम जी रहे होते
सबके आंशू, पी रहे होते
गूंजती, देखते गर, हवाओं में चीखें
कुछ रिश्ते पिरो रहे होते
बात होती रही , सदियों से, संस्कारों की
बिखरते रिश्तों की ,
कुत्सित विकारों की,
राम-राज्य की यादें संजो रहे होते
काश हम जी रहे होते ....
खोज लेते कोई गृह, नया आसमा
नयी पृथ्वी संजो रहे होते
काश ! हम जी रहे होते ...
मिल ही जाती कोई और
चाँद सी पृथ्वी
सीप से मोती...
सागर के तह में जो गए होते
काश हम जी गए होते ....

10 टिप्‍पणियां:

  1. "जी" ही तो नहीं रहें है हम, बस जी रहे हैं - प्रभावी उदगार

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  2. उलाहना |
    सटीक -
    शुभकामनायें आदरणीय ||

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  3. बस इस एक काश पे ही तो दुनिया अटकी है या यूं कहें की चल रही है मैंने भी कुछ ऐसा ही लिखा है समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/

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  4. काश,आपकी कल्पना को हम सब सोचते ! बहुत ही सुन्दर सोच।

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  5. मिल ही जाती कोई और
    चाँद सी पृथ्वी
    सीप से मोती...
    सागर के तह में जो गए होते
    काश हम जी गए होते ....
    vah sunder bhav bhari kavita
    rachana

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  6. काश..
    शुभकामनायें आपको !

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  7. काश! हमम्म्म्मम्म्म्म जी रहे होते !!!
    शुभकामनायें!

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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