कौन कहता है
हमारा धड़कता नहीं है
दिल
हमारे सपनों में कोई नहीं मुस्कुराता
कभी भी
यादों के झरोखों से कोई नहीं झांकता
कसक नहीं उठती
मिलन की
कसमसाता नहीं है
कोई झरना
ओस सी बूँदें
नहीं भिगोती कहीं भी ,
कभी भी
संबंधों का दर्द चुभता नहीं है बाई ओर
चुभन बनकर
हिकारत की नज़रों से जब भी
देखता है कोई
मै भी महसूसता हूँ कोई बेवफाई
मुझे भी भिगो जाती है कोई बरसात
उडाती है मेरे भी गालों पर लटें
कोई पुरवाई
मैं भी महसूसती हूँ
प्रसव वेदना
मात्रत्व की बाल सुलभ शर्म
चाहती हूँ मैं भी
पुकारे कोई तोतली आवाज़
मगर मुझे तो अभी
खुशियों के गीत गाने है
तुम्हारे घर
तुम्हारी गलियों में
तुम्हारे सांस्कृतिक रीति रिवाजों में
और आंशुओं से परिपूरित करना है
बक्शीश के लिए नंग नांच
यही जो नियति है
अब इसे तुम कुछ भी नाम दो ..
क्या नाम दोगे .....बताओ .
गहन भाव लिये ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंOne of your best creations revealing the bitter truth.
जवाब देंहटाएंकटु सत्य का सजीव चित्रण...बहुत मर्मस्पर्शी रचना...
जवाब देंहटाएंसंबंधों का दर्द चुभता नहीं है बाई ओर
जवाब देंहटाएंचुभन बनकर
हिकारत की नज़रों से जब भी
देखता है कोई
मै भी महसूसता हूँ कोई बेवफाई
मुझे भी भिगो जाती है कोई बरसात
वाह बहुत खूब
बहुत संवेदनशील रचना ........
जवाब देंहटाएंअति संवेदनशील भावभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली ,
जवाब देंहटाएंजारी रहें।
शुभकामना !!!
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बहुत ही सुन्दर,भावपूर्ण,संवेदनशील अभिव्यक्ति,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंभूली-बिसरी यादें
गहन अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंdard ka anokha chitrn......
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