महेश कुशवंश

2 जनवरी 2013

एक बेटी फिर .....

एक बेटी फिर
दरिंदगी की शिकार हुयी
हम कभी उनको
कभी और उनको कोसते रहे
अक्रॊश रगों में भरते रहे
पोर्च में चहल कदमी करते रहे
दूरदर्शन पर आ रही ख़बरों पर
उबलते रहे
मगर झाँक कर नहीं देखा आसपास
जन्म लेते हुए शैतान को
जिसकी नुकीली आंखें असंस्कृत भाषा में
सांस्कृतिक अश्लीलता परोसती रही
गुनगुनाती रही
हलकट जवानी ... शीला की जवानी ...
और भी न जाने क्या क्या
और उछालते रहे प्रश्न दर प्रश्न
दूसरों से
निशाना साधते रहे कभी इस पर
कभी उस पर
मर गयी हमारी संवेदनाएं
सड़क पर बिखरते रहे संस्कृतिक खून के छींटे
कुछ हम पर भी पड़े
मगर धो लिए हमने मुह फेसवाश  से
उठो जागो आवाहन करो
अपनी संवेदनाएं जगाओ और मत होने दो
किसी  दामिनी का क़त्ल
दर असल क़त्ल किसी दामिनी का नहीं हुआ
हमारा हुआ
हमारी,  आपकी संवेदनाओं का हुआ
सदियों से परत-दर-परत चढी
धुल धूसरित भावनाओं का हुआ
कैसे पैदा हुए दरिन्दे
क्या किसी और लोक से आये
ये जन्मे हमारी अकर्मण्यता से
हमारी अनमनी सी जिम्मेदारी से
नव वर्ष बस तभी मनाएं
प्रण ले और इन रक्तबीज दरिंदों को
जड़ से मिटाए .....
बस ......
अपने आस पास उग  रही कटीली झाड़ियों को
जड़ से मिटायें ...जड़ से मिटायें ...

-नव वर्ष की अश्रुपूरित शुभकामनायों सहित -कुश्वंश

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपने सही कहा -असंस्कृति को फ़ैलाने वाले पर कोई अंकुश नहीं है -बुराई का जड़ काटना जरुरी है,
    मेरी नई पोस्ट : "काश !हम सभ्य न होते "

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  2. मधुर भाव लिये भावुक करती रचना.

    जवाब देंहटाएं
  3. बुराई की जड़े समाज में ही पनपने लगती है ..बस हमें दस्तक सुननी होती है ... समाज को जागरूक रहना होगा। सार्थक रचना।

    यहाँ पर आपका इंतजार रहेगाशहरे-हवस

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  4. "मैं हूँ तंदूरी मुर्गी गटक ले मुझे अल्कोहोल से"
    के प्रति हमें अपनी आवाज बुलंद करनी होगी - प्रेरक प्रस्तुति के लिए आभार

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  5. बहुत जरुरी इसपर रोक लगाना...सार्थक रचना

    जवाब देंहटाएं
  6. नव वर्ष बस तभी मनाएं
    प्रण ले और इन रक्तबीज दरिंदों
    जड़ से मिटाए .....
    बस ......
    अपने आस पास उग रही कटीली झाड़ियों को
    जड़ से मिटायें ...जड़ से मिटायें ...

    यही आह्वान होना चाहिये

    जवाब देंहटाएं
  7. ये जन्मे हमारी अकर्मण्यता से
    हमारी अनमनी सी जिम्मेदारी से

    बिल्कुल सही कहा आपने

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  8. अपने आस पास उग रही कटीली झाड़ियों को
    जड़ से मिटायें ...जड़ से मिटायें ...

    ...बहुत सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति...

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  9. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


    हम कभी उनको
    और कभी उनको कोसते रहे
    आक्रॊश रगों में भरते रहे

    मगर झाँक कर नहीं देखा आसपास
    जन्म लेते हुए शैतान को
    जिसकी नुकीली आंखें असंस्कृत भाषा में
    सांस्कृतिक अश्लीलता परोसती रही
    गुनगुनाती रही
    हलकट जवानी ... शीला की जवानी ...
    और भी न जाने क्या क्या

    करना ही होगा आत्म मंथन हर पुरुष के साथ-साथ हर औरत को भी !!

    आदरणीय कुश्वंश जी
    सचमुच विचारणीय बात है कि -
    कैसे पैदा हुए दरिन्दे
    क्या किसी और लोक से आये
    ये जन्मे हमारी अकर्मण्यता से
    हमारी अनमनी सी जिम्मेदारी से

    आगे बढ़ कर हम सबको दायित्व लेने होंगे ...

    सार्थक सृजन हेतु बधाई !

    गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं …
    ... और शुभकामनाएं आने वाले सभी उत्सवों-पर्वों के लिए !!
    :)
    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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