काश ! हम जी रहे होते
सबके आंशू, पी रहे होते
गूंजती, देखते गर, हवाओं में चीखें
कुछ रिश्ते पिरो रहे होते
बात होती रही , सदियों से, संस्कारों की
बिखरते रिश्तों की ,
कुत्सित विकारों की,
राम-राज्य की यादें संजो रहे होते
काश हम जी रहे होते ....
खोज लेते कोई गृह, नया आसमा
नयी पृथ्वी संजो रहे होते
काश ! हम जी रहे होते ...
मिल ही जाती कोई और
चाँद सी पृथ्वी
सीप से मोती...
सागर के तह में जो गए होते
काश हम जी गए होते ....
"जी" ही तो नहीं रहें है हम, बस जी रहे हैं - प्रभावी उदगार
जवाब देंहटाएंउलाहना |
जवाब देंहटाएंसटीक -
शुभकामनायें आदरणीय ||
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबस इस एक काश पे ही तो दुनिया अटकी है या यूं कहें की चल रही है मैंने भी कुछ ऐसा ही लिखा है समय मिले आपको तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है http://mhare-anubhav.blogspot.co.uk/
जवाब देंहटाएंकाश,आपकी कल्पना को हम सब सोचते ! बहुत ही सुन्दर सोच।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...
जवाब देंहटाएंgahrayee se likhi .....bahut achchi.
जवाब देंहटाएंमिल ही जाती कोई और
जवाब देंहटाएंचाँद सी पृथ्वी
सीप से मोती...
सागर के तह में जो गए होते
काश हम जी गए होते ....
vah sunder bhav bhari kavita
rachana
काश..
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
काश! हमम्म्म्मम्म्म्म जी रहे होते !!!
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें!