महेश कुशवंश

14 जून 2012

कोंपलों के लिए



कुछ शब्द
मन में घुमड़ते
मानसून बनकर
कुछ शब्द पसरे
सड़क पर
जूनून बनकर
शब्दों के मायाजाल में
उलझा रहा हूँ मैं
गुत्थियां दर गुत्थिया
सुलझा रहा हूँ मैं
जागता हूँ
रात भर
करवट बदल
शब्द पहलू सो  रहे
सुकून बनकर
सुबह होगी
मैं जगा सा
उठ पडूंगा 
सुकून के शब्दों को फिर से
मै बुनूँगा
सोचता हूँ शब्दों को
आराम दे दूं
उनमे से  कुछ को
अच्छा सा
कोई नाम दे दूं
भूल जाऊं
शब्दों को
सीना पिरोना
कोंपलों के लिए
जमी पर बीज बोना .




21 टिप्‍पणियां:

  1. जाने कब कौन सा कोना सुलझे ... खुद को भरमा रहा हूँ

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  2. वाह ...बहुत ही बढिया।

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  3. शब्दों को पहलू में रखकर सोना
    वाह क्या बात है ...

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  4. शब्दों के मायाजाल में
    उलझा रहा हूँ मैं
    गुत्थियां दर गुत्थिया
    सुलझा रहा हूँ मैं....

    सुंदर रचना...
    सादर

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  5. बहुत खूब|||
    बहुत ही सुन्दर रचना....
    :-)

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  6. जागता हूँ
    रात भर
    करवट बदल
    शब्द पहलू सो रहे
    सुकून बनकर
    वाह सुन्दर भाव ,शब्द ..गज़ब का प्रवाह .

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  7. sahbdon ka seena-pirona chaalu rakhiye...jyada aaraam mat dijiye unhe nahi to vo nirash ho kar hamare shabd-kosh se muh mod lete hain.

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  8. सोचता हूँ शब्दों को
    आराम दे दूं
    उनमे से कुछ को
    अच्छा सा
    कोई नाम दे दूं

    very impressive...

    .

    जवाब देंहटाएं
  9. सोचता हूँ शब्दों को
    आराम दे दूं
    उनमे से कुछ को
    अच्छा सा
    कोई नाम दे दूं..

    very impressive..

    .

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बेहतरीन रचना....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

    जवाब देंहटाएं
  11. भूल जाऊं
    शब्दों को
    सीना पिरोना
    कोंपलों के लिए
    जमी पर बीज बोना .

    ....बेहतरीन अभिव्यक्ति...

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  12. सोचता हूँ शब्दों को
    आराम दे दूं.....

    बढ़िया अभिव्यक्ति

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  13. बहुत सुन्दर.........
    लफ़्ज़ों को खूबसूरती से पिरोया है.......

    सादर

    अनु

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  14. खूबसूरत ख्याल बुना है..शब्दों के पहलु में सोना ..वाह ..बेहतरीन.

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  15. शब्दों की कोंपलें तो खूब निकल रही हैं फिर आराम की बात क्यूं ।
    कविता बहुत खूबसूरत है शब्द शब्द बहुत कुछ कह रहा है ।

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