महेश कुशवंश

4 जून 2012

रिसते जख्म से बातें करें

आओ
रिसते जख्म  से बातें करें
कोई सुने
या  फिर
कुछ भी ना सुने
अंतर्मुखी का
मुख भी चाहे बंद हो
जख्म का आपस में कितना
द्वंद हो
खुली खिडकियों से हवाए लौट जाएँ
बंद दरवाजे महज
सन्नाटा बिछायें
टूटते रिश्तों की चाहे हो महक
टूटते घोसले की हो
चाहे चहक
आओ जलते जिस्म से
बाते करें
अपने ही नाखूनों से कुरेदे  अतीत से
बाते करे
आओ रिसते जख्म से बाते करें
पीठ पर  ठन्डे थपेड़े ही सही
कुछ तो उन
अमराइयों की
बाते करें
क्यों आज फिर
जख्म की बाते करें .

- कुश्वंश

14 टिप्‍पणियां:

  1. जख्म का आपस में कितना
    द्वंद हो
    खुली खिडकियों से हवाए लौट जाएँ
    बंद दरवाजे महज
    सन्नाटा बिछायें
    टूटते रिश्तों की चाहे हो महक
    टूटते घोसले की हो
    चाहे चहक
    आओ जलते जिस्म से
    बाते करें
    बेहतरीन भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार ।

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  2. अतीत की सुहानी यादोँ की बात करना ....गर्मी में ठंडी हवा के झोंकों की तरह है ......
    शुभकामनाएँ!

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  3. अतीत की पुरानी यादो को कभी कभी
    याद करना बहुत सुकून भरा होता है...
    कोमलभाव युक्त बेहतरीन रचना....

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  4. यादों को संजोए बेहतरीन रचना...

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  5. आओ रिसते जख्म से बाते करें
    पीठ पर ठन्डे थपेड़े ही सही
    कुछ तो उन
    अमराइयों की
    बाते करें
    क्यों आज फिर
    जख्म की बाते करें

    i liked it.

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  6. आओ रिसते जख्म से बाते करें....बेहद संजीदगी भरी कविता ...

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  7. गहन भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
    आशा

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  8. कुछ तो उन
    अमराइयों की
    बाते करें
    क्यों आज फिर
    जख्म की बाते करें....

    बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति...
    सादर

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  9. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति....

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. आओ रिसते जख्म से बाते करें
    पीठ पर ठन्डे थपेड़े ही सही
    कुछ तो उन
    अमराइयों की
    बाते करें

    behatreen panktiyan

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  12. जख्म जितना दर्द देते हैं उनकी बातें दर्द को कम कर देती है

    इसलिये आओ
    फिर जख्म की बातें करें
    रिसते दर्द की बातें करें ।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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