महेश कुशवंश

8 अप्रैल 2012

दिल ही दिल

रास्ते जैसे भी  थे ,  
संगीन थे
दोस्त जितने भी मिले
रंगीन थे
कुछ न कुछ तो था मगर
जाने न तुम
कनखियों की राह
पहचाने न तुम
रास्ते में जो मिले
ग़मगीन थे
जो भी मिले  संगी सभी
नमकीन थे 
पड़ोसी जितने मिले 
तमाशबीन थे 
क्या करे
पूंछे दिल का हाल
किससे
दिल ही दिल में सब
दिलों से हीन थे 

-कुश्वंश


9 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर शब्द चयन-
    गतिमान पाठ ||

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  2. पूंछे दिल का हाल
    किससे
    दिल ही दिल में सब
    दिलों से हीन थे
    अच्छे पडोसी मिलना भी किस्मत की बात है... सुन्दर रचना...आभार

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  3. आज स्वार्थ के चलते लोगों के पास दिल बचा ही कहाँ है ... अच्छी प्रस्तुति

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  4. आज की दुनिया का यही सच है...

    क्या करे
    पूंछे दिल का हाल
    किससे
    दिल ही दिल में सब
    दिलों से हीन थे

    बहुत अच्छी रचना, बधाई.

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  5. दिल ही दिल में सब
    दिलों से हीन थे
    यही तो विसंगति है

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  6. गहन भाव व्यक्त करती सुन्दर रचना.

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  7. दिल ही दिल में सब
    दिलों से हीन थे

    ....यही तो आज का कटु सत्य है... बहुत सुन्दर रचना..

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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