महेश कुशवंश

19 दिसंबर 2011

जनकवि नहीं रहे ....

मै जानता हूँ
उस जन कवि को 
जिसकी कविताये
बुझे चूल्हों और
घुसे पेटों से निकलती थी
और रोटी को  छीन कर भागते कुत्तों पर
ठहर जाती थीं  
कुत्तों से उस रोटी को
छीन  लेते थे  बन्दर
बांटने का उपक्रम करते  
हक की बात करने वाले बन्दर 
खा जाते थे सारी रोटी
और निर्णय की आस में
मुह ताकता रहता था जुम्मन
उस जन कवि ने 
मुह पर घास ठूसे 
बिवाई फटे पैरों से  
खेत रौदते किसान को  
रोटी के लिए लम्बरदार का  हुक्का भरते 
आज भी देखा है  
सड़के आज भी  दूर हैं 
उस फूस के गाव से  
जहा  आग तो पहुच जाती है  
मगर चूल्हे ठन्डे हो जाते हैं  
तुम कितने भी 
जनकवि बनो  
जलते हुए प्रश्न करो
और तुमने यही तो किया  उम्र भर
और चले गए
तुम्हे हमने तब भी सूना
आज भी
जिनको सुनना था  उन्होंने
न तब सुना ना आज 
क्योंकी शीशे भरे कानो में 
आवाज़ अन्दर तक नहीं जाती 
तुम्हारे असमय जाने से भी नहीं
जीते जी तुम्हे दुतकारता रहा
सरकारी अस्पताल
उस सब के लिए जो कभी
तुम्हारी प्राथमिकताओं में नहीं था
आज तुम्हार्रे गाव की सड़क
तुम्हे याद रखेगी
"अदम गोंडवी" सड़क
लेकिन तुम्हारे  सड़क से आदर्शों पर 
कौन चलना चाहेगा
सारी शक्ति जुटा के भी नहीं
शायद कोई नहीं.

-कुश्वंश

13 टिप्‍पणियां:

  1. जिनको सुनना था उन्होंने
    न तब सुना ना आज
    क्योंकी शीशे भरे कानो में
    आवाज़ अन्दर तक नहीं जाती
    तुम्हारे असमय जाने से भी नहीं ..
    सटीक अभिव्यक्ति... आभार

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  2. देखा है
    सड़के आज भी दूर हैं
    उस फूस के गाव से
    जहा आग तो पहुच जाती है
    मगर चूल्हे ठन्डे हो जाते हैं ... jane se bhi kuch kahan badalta hai

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  3. जिसकी कविताये
    बुझे चूल्हों और
    घुसे पेटों से निकलती थी
    और रोटी को छीन कर भागते कुत्तों पर
    ठहर जाती थीं

    बहुत उम्दा , जनकवि को नमन , श्रद्धांजलि

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  4. बहुत सार्थक भाव पूर्ण प्रस्तुति |
    आशा

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  5. बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति दी है आपने ... जनकवि को नमन , विनम्र श्रद्धांजलि
    कल 21/12/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, मेरी नज़र से चलिये इस सफ़र पर ...

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  6. उस फूस के गाव से
    जहा आग तो पहुच जाती है
    मगर चूल्हे ठन्डे हो जाते हैं

    यथार्थ और सटीक चित्रण
    जनकवि को भावभीनी श्रधांजलि ..

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  7. सार्थक सुंदर भावपूर्ण सयोंजन की बेहतरीन प्रस्तुति,...बधाई ...

    नये पोस्ट की चंद लाइनें पेश है.....

    पूजा में मंत्र का, साधुओं में संत का,
    आज के जनतंत्र का, कहानी में अन्त का,
    शिक्षा में संस्थान का, कलयुग में विज्ञानं का
    बनावटी शान का, मेड इन जापान का,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  8. बहुत अच्छी अभिव्यक्ति..
    शायद सच्ची श्रद्धांजलि यही है अदम गौंडवी जी के लिए ..
    रचना के लिए बधाई और अदम जी को श्रद्धा सुमन.
    सादर.

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  9. जिनको सुनना था उन्होंने
    न तब सुना ना आज
    क्योंकी शीशे भरे कानो में
    आवाज़ अन्दर तक नहीं जाती
    तुम्हारे असमय जाने से भी नहीं

    ....बहुत सटीक और सच्ची श्रद्धांजलि...

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  10. सार्थक सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति................

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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