महेश कुशवंश

4 नवंबर 2011

जिन्हें हम देखते ही नहीं...





अचानक नींद खुली
देखा
आसमान में सितारों संग
चाँद
क्षितिज  में  लटका हुआ था
मैं हडबडा गया 
सामने सूरज उगने को है 
और ये चाँद 
घर क्यों नहीं गया  
प्रकृति की ये  अवहेलना क्यों  
ऐसे तो ये  सारे जगत को  
रुसवा कर देगा ..
चाँद से ज्यादा मैं डर रहा था
लालिमा फट रही थी  
तेज चमक और अंगारों से  अभी 
चाँद को  भागना होगा
मैं अधीर हो रहा था   
तारे गुम हो गए थे.. 
जहाज़ डूबते देखकर चूहे.. जैसे 
चाँद अभी भी निर्भीक 
आसमां में निश्छल खड़ा था  
मानो इंतज़ार में हो  
पूरब से सूरज उगा  
मगर अंगार बिखेरता नहीं  
किसी प्रेमी की तरह 
लावण्या बिखेरता हुआ  
रक्ताभ
मात्र चित्रकार की  कलम सा उकेरा
सुबह का कोमल सूरज 
चाँद  भी वही करीब ही था  
प्रेयसी की तरह 
प्रेम के इज़हार को आमदा
सूर्य की किरने अठखेलियों करने लगीं
मानो कह रही हो  
मुझे  तुमसे 
मुहब्बत है......मुहब्बत
और  चाँद शर्माकर छिपने लगा
ओट में
घूंघट में 
और मैं
प्रेम की एक नयी कहानी देख रहा था
और मन
पढ़ रहा था 
प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं  
जो बिखरी है  हमारे आसपास 
हम है की  देखते ही नहीं .

-कुश्वंश  


24 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .
    बहुत ही अच्‍छी रचना ...

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  2. अरे वाह! बहुत खूब सूरत अनुभव करते और कराते है आप.
    प्रेम की अदभूत परिभाषा करने के लिए प्रेम भरा हृदय भी
    तो चाहिये.

    सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार जी.
    मेरे ब्लॉग से क्यूँ मुँह मोड लिया है आपने.

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  3. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .
    यही तो हमारी नासमझी है अच्छे अनुभव अच्छी पोस्ट

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  4. कुश्वंश जी ,
    इस बेहतरीन , उम्दा प्रस्तुति से मन भर आया। निर्भय हो चाँद खड़ा था प्रेम का इज़हार करने को । अद्भुत कल्पना किन्तु कितनी सटीक। प्रेम सर्वत्र बिखरा हुआ है , ज़रुरत है तो सिर्फ आगे बढ़कर समेट लेने की और फिर लुटाने की।

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  5. बहुत ही खूबसूरत कविता।

    सादर

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  6. अनुभूतियों का आकाश आपको अच्‍छी तरह दिखाई देता है ..
    शुभकामनाएं !!

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  7. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .
    यकीनन नित नूतन है प्रेम और प्रकृति ..
    बहुत सुन्दर

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  8. bahut sundar pyaar ki addbhut kalpna prakarti se hi to hume pyaar ki shiksha milti hai.

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  9. "प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं ..." बहुत खूब कहा और सही कहा ..

    "गुस्ताखियाँ थी या तेरी नादानियाँ --
    तोहफ़ा समझकर यार का हम तो बहल गए !!!!!"

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  10. चाँद भी अद्भुत प्रेमी है ।
    आवारा आशिक की तरह सुबह देर तक तकता रहता है अपने प्रेमी को और शाम को भी आ खड़ा होता है राह में इंतजार करते ।

    प्रेम कितना सही है , यह भी एक सवाल है ।

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  11. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .

    सुंदर रचना ...
    आभार आपका !

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  12. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं ... aalochnaaon ke mahajaal se niklen tab to nazar aaye

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  13. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .

    ....लाज़वाब अनुभूति...अद्भुत अभिव्यक्ति..

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  14. प्रेम को परिभाषित करती अद्भुत रचना. आभार.

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  15. प्रेम की एक अलग और अदभुत रचना....

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  16. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .
    बहुत खूब कहा है ।

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  17. आदरणीय बंधुवर कुश्वंश जी
    सस्नेहाभिवादन !

    बहुत तबीयत से बुनी है आपने यह कविता -
    चांद अभी भी निर्भीक
    आसमां में निश्छल खड़ा था
    मानो इंतज़ार में हो

    पूरब से सूरज उगा
    मगर अंगार बिखेरता नहीं
    किसी प्रेमी की तरह
    लावण्या बिखेरता हुआ
    रक्ताभ
    मात्र चित्रकार की कलम सा उकेरा
    सुबह का कोमल सूरज

    वाह ! मनभावन !!

    …और मैं
    प्रेम की एक नयी कहानी देख रहा था

    यह सब देखने के लिए अलग ही दृष्टि चाहिए … जो आपके पास है
    कुश्वंश भाई !

    बहुत सुंदर छायावाद का पुनर्स्मरण कराती रचना के लिए आभार !

    बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  18. प्रेम की एक नयी कहानी देख रहा था
    और मन
    पढ़ रहा था
    प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है कि देखते ही नहीं .

    हां, प्रेम के अद्भुत स्वरूपों से हम घिरे हुए हैं फिर भी उन्हें हम पहचान नहीं पाते।

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  19. prem ki paribhaashit paribhaasha ki jagah apni anubhutiyon se rachi paribhaasha aanad deti hai. sundar rachna, badhai.

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  20. बहुत सुन्दर सुकुमार कल्पना ! सच में कितना सत्य, शिव और सुन्दर हमारे आस-पास बिखरा पड़ा है बस देखने वाली पारखी नज़र चाहिये ! अद्भुत अनुपम इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई !

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  21. प्रेम की अद्भुत परिभाषाएं
    जो बिखरी है हमारे आसपास
    हम है की देखते ही नहीं .
    सुन्दर!

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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