गयी दिवाली
घर आँगन में दिए जलाकर
दिल के पिछले कोने के सब
गम सहलाकर
महल, झोपडी, गली, मोहल्ला
बिखरी खुशियों का हो हल्ला
आले, छज्जे , छत , चौबारे
रोशन हर घर के चौबारे
बिखरी धवल चांदनी आँगन
खुशियों से हर ह्रदय मगन
ऐसे में बैठा ये कौन ?
उस कोने में बिलकुल मौन
मैंने पूंछा कौन हो भाई
उसने अपनी व्यथा सुनायी
मैं भी चाहता मन बहलाना
तम, हरने को दिए जलाना
मजहब नहीं इज़ाज़त देता
काफ़िर समझे, वो अभिनेता
नहीं समझते कुछ इंसान
हम आदम की सब संतान
एक जाति बस एक धरम
अलग अलग बस हुए करम
जिसने किया हमें बेगाना
उसको बस इतना समझाना
हम है सब उसकी संतान
जिससे धरती हुयी महान
एक रोशनी उधर दिखाओ
सच्चे अर्थों में दिए जलाओ
सभी मिलें और लें शपथ
पकड़ेंगे, मानवता पथ .
-कुश्वंश
(मोहल्ले के एक घर में रोशनी न देखकर मन उद्देलित हो गया ...बस. )
sadopdesh deti sunder rachna.
जवाब देंहटाएंसच्चाई से रूबरू करवाने का आभार ......
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंbahut hi achhi rachna
जवाब देंहटाएंरचना ने ब्लॉग शीर्षक को सार्थक कर दिया.
जवाब देंहटाएंइसलिए ही हमारे यहाँ दिवाली पर मंदिर में दिए रखकर लौटने के बाद राह में पड़ने वाले हर घर, अँधेरे चौराहे, या जिस घर में किसी कारण दिए नहीं जलाये गये हों , दिया रखने की परम्परा है !
जवाब देंहटाएंबहुत सही सर!
जवाब देंहटाएं----
कल 04/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
सच को बयाँ करती सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना....
जवाब देंहटाएंसार्थक व सटीक लेखन ...आभार ।
जवाब देंहटाएंयह भी एक कटु सच्चाई है ..अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसंवेदनाओं से परिपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंरौशनी न होने की वज़ह कुछ और भी हो सकती है ।
सही कहा है मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है... सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंमानवता का धर्म निभा लिया तो सब हो आया ... असली पर्व तो तभी मनाया जाता है ...
जवाब देंहटाएंरोशनी पर्व को रोशनी दिखाती रचना
जवाब देंहटाएंएक रोशनी उधर दिखाओ
जवाब देंहटाएंसच्चे अर्थों में दिए जलाओ
सभी मिलें और लें शपथ
पकड़ेंगे, मानवता पथ .
बढिया संदेश !!
आपकी इस सवेदनाओं से परिपूर्ण रचना ने आपके ब्लॉग के शीर्षक को सार्थक करदीय बहुत बढ़िया प्रस्तुति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंसभी मिलें और लें शपथ
जवाब देंहटाएंपकड़ेंगे, मानवता पथ .
वाह! सादर बधाई....
बहुत ही सुन्दर रचना है
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति..
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवो यदि घर में दिए जलाता तो अपने दीं में काफिर न हो जाता...और उसके दीं में कुफ्र की सजा मौत जो है...
काश वे समझें , जिन्हें समझाना चाहता है कवि। आमीन।
जवाब देंहटाएंअलग अलग बस हुए करम
जवाब देंहटाएंजिसने किया हमें बेगाना
उसको बस इतना समझाना
हम है सब उसकी संतान
जिससे धरती हुयी महान
एक रोशनी उधर दिखाओ
सच्चे अर्थों में दिए जलाओ
सभी मिलें और लें शपथ
पकड़ेंगे, मानवता पथ
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति