महेश कुशवंश

3 नवंबर 2011

हम हैं आदम की संतान


गयी दिवाली
घर आँगन में दिए जलाकर
दिल के पिछले कोने के सब 
गम सहलाकर
महल, झोपडी, गली, मोहल्ला
बिखरी खुशियों का हो हल्ला
आले, छज्जे , छत  , चौबारे
रोशन हर घर के चौबारे 
बिखरी धवल चांदनी आँगन 
खुशियों से हर ह्रदय मगन 
ऐसे में  बैठा ये कौन ?
उस कोने में  बिलकुल मौन   
मैंने पूंछा कौन हो भाई 
उसने अपनी व्यथा सुनायी 
मैं भी चाहता मन बहलाना 
तम, हरने को दिए जलाना  
मजहब नहीं इज़ाज़त देता 
काफ़िर समझे, वो अभिनेता 
नहीं समझते कुछ इंसान 
हम आदम की सब संतान 
एक जाति बस  एक धरम 
अलग अलग बस हुए करम
जिसने किया हमें  बेगाना  
उसको बस इतना समझाना 
हम है  सब उसकी संतान  
जिससे धरती हुयी महान 
एक रोशनी उधर दिखाओ  
सच्चे अर्थों में दिए जलाओ
सभी मिलें और लें शपथ 
पकड़ेंगे, मानवता पथ .

-कुश्वंश 

(मोहल्ले के एक घर में रोशनी न देखकर मन उद्देलित हो गया ...बस. ) 

  

22 टिप्‍पणियां:

  1. सच्चाई से रूबरू करवाने का आभार ......

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  2. रचना ने ब्लॉग शीर्षक को सार्थक कर दिया.

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  3. इसलिए ही हमारे यहाँ दिवाली पर मंदिर में दिए रखकर लौटने के बाद राह में पड़ने वाले हर घर, अँधेरे चौराहे, या जिस घर में किसी कारण दिए नहीं जलाये गये हों , दिया रखने की परम्परा है !

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  4. बहुत सही सर!

    ----
    कल 04/11/2011को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  5. सच को बयाँ करती सार्थक रचना।

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  6. सार्थक व सटीक लेखन ...आभार ।

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  7. यह भी एक कटु सच्चाई है ..अच्छी प्रस्तुति

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  8. संवेदनाओं से परिपूर्ण रचना ।
    रौशनी न होने की वज़ह कुछ और भी हो सकती है ।

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  9. सही कहा है मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है... सुन्दर रचना

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  10. मानवता का धर्म निभा लिया तो सब हो आया ... असली पर्व तो तभी मनाया जाता है ...

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  11. रोशनी पर्व को रोशनी दिखाती रचना

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  12. एक रोशनी उधर दिखाओ
    सच्चे अर्थों में दिए जलाओ
    सभी मिलें और लें शपथ
    पकड़ेंगे, मानवता पथ .

    बढिया संदेश !!

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  13. आपकी इस सवेदनाओं से परिपूर्ण रचना ने आपके ब्लॉग के शीर्षक को सार्थक करदीय बहुत बढ़िया प्रस्तुति समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है

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  14. सभी मिलें और लें शपथ
    पकड़ेंगे, मानवता पथ .

    वाह! सादर बधाई....

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  15. बहुत ही सुन्दर रचना है
    सुन्दर प्रस्तुति..

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  16. सुन्दर प्रस्तुति
    वो यदि घर में दिए जलाता तो अपने दीं में काफिर न हो जाता...और उसके दीं में कुफ्र की सजा मौत जो है...

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  17. काश वे समझें , जिन्हें समझाना चाहता है कवि। आमीन।

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  18. अलग अलग बस हुए करम
    जिसने किया हमें बेगाना
    उसको बस इतना समझाना
    हम है सब उसकी संतान
    जिससे धरती हुयी महान
    एक रोशनी उधर दिखाओ
    सच्चे अर्थों में दिए जलाओ
    सभी मिलें और लें शपथ
    पकड़ेंगे, मानवता पथ

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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