इस छोर से उस छोर तक
उस पूरी लाइन में
जगमग करते
गली चौबारे
रोशनी और पटाखों से
खिलखिलाते बचपन
दीपावली की शुभकामनाएं
एक दुसरे को बांटते शब्द
उस घर से दूर थे क्या ?
रौशनी का एक दिया भी नहीं
अचानक
एक हाँथ में दिया लेकर
दादा
दोमंजिले पोर्च में आते है
औए एक दिया लेकर
दादी नीचे नज़र आती है
में पत्नी संग
उन्हें शुभकामनाये देने जाता हूँ
वो दरवाज़ा नहीं खोलते
में दरवाजा दो तीन बार खटखटाकर लौट आता हूँ
और शुभकामनाओं के आदान प्रदान के साथ
सो जाता हूँ
सुबह सुबह
दादा दादी को दरवाजे पर देख कर
चौंक जाता हूँ
इससे पहले में कुछ बोलूँ
वो कल के लिए माफी मांगते है
बेटा बड़ी भारी हो जाती है दीवाली
जब लोग पूछते है
कोई बेटा नहीं आया
त्यौहार में भी
हम बेटों की मजबूरी समझते है
लोग नहीं समझते
और हम किस किस को बेटों की मजबूरियां गिनाये
लोग शुभकामनाओं से पहले
सवाल करते है
जिसका कोई जवाब नहीं होता
भरी आँखों से वे हमें
आशीर्वाद देकर चले गए
हम दीवाली के इस आदान प्रदान पर
बुझे हुए दिए हो गए थे
जलते हुए भी .
-कुश्वंश
इस व्यथा को कोई समझे तो ...
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर करती रचना ..!
जवाब देंहटाएंरवि को रविकर दे सजा, चर्चित चर्चा मंच
जवाब देंहटाएंचाभी लेकर बाचिये, आकर्षक की-बंच ||
रविवार चर्चा-मंच 681
सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति , बधाई.
जवाब देंहटाएंसोचने को मजबूर करती रचना।
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबुजुर्गों की व्यथ समझनी चाहिए ....लेकिन वे दिए बुझे हुए नहीं थे....रौशन रहेंगे सदा ऐसे दिए....किवाड़ न खुले तो क्या ..... उनकी भी व्यथा कम नहीं...
जवाब देंहटाएंइस व्यथा के प्रति हम संवेदनशील हों....
जवाब देंहटाएंयह भी एक व्यथा है ।
जवाब देंहटाएंवैसे बच्चे न आयें तो बड़ों को बच्चों के पास चले जाना चाहिए ।
शुभकामनायें ।
bujurgon ki vyatha ujagar karti bhavpurn rachna...
जवाब देंहटाएंखुशुयाँ बांटने का त्यौहार है दिवाली और इसे बुजुर्गों के साथ मनाने से खुशी और बड जाती अहि ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक पंक्तियां।
जवाब देंहटाएंचार पैसा कमाते ही बेटों की नजरें बदल जाती हैं।
मार्मिक रचना... आजकल तो घर-घर की यही कहानी है... अंतहीन कहानी
जवाब देंहटाएंविचारोत्प्रेरक रचना...
जवाब देंहटाएंसादर...
कुश्वंश जी नमस्कार, बड़ी बात आपने रचना के माध्यम से उकेर दी है। मेरे ब्लाग पर भी आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना ।
जवाब देंहटाएंहम दीवाली के इस आदान प्रदान पर
जवाब देंहटाएंबुझे हुए दिए हो गए थे
जलते हुए भी .
...बहुत मार्मिक प्रस्तुति...हम अपने बुजुर्गों के प्रति इतने संवेदनहीन क्यों हो गये हैं...
सुन्दर हृदयस्पर्शी व प्रेरणादायक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आईयेगा,कुश्वंश जी.
आपका इंतजार है.