जब एक सत्तर वर्ष की माँ ने
मेरे आगे हाँथ जोड़े
तो मेरा अस्तित्व हिल गया
ऐसा क्या किया था मैंने ?
जो अश्रुपूरित,
सारे ब्रन्हांड की संवेदना समेटे,
जिजीविषा से भरी दो आँखे,
मुझे इतनी आत्मीयता और
सम्मान को तत्पर है,
मैंने माँ के हाथ पकड़ लिए
और अपने सर पे रख लिए
आशीर्वाद दो
मुझे यही चाहिए
माँ ने झटके से खीच लिया हाँथ
ना बेटा ... क्या करते हो
सर पे हाथ .. तुम्हारे..... कभी नहीं
मै भौचक
अपराध बोध से ग्रषित , शशंकित
अपराध बोध से ग्रषित , शशंकित
माँ...!
क्या मै आपके आशीर्वाद का हक़दार नहीं ?
फिर ये कंजूसी क्यों ?
न .. बेटा... ,
तेरे लिए तो जान भी दे दू
मगर अब और सर पे हाथ नहीं
बेटों के सर पे बहुत रखा
आज .. बबूल सी खड़ी हूँ निपट अकेली
बहुत दूर तक अकेली जाती इस सड़क के
उस कोने का मकान है मेरा
उस कोने का मकान है मेरा
जिसके आस पास
हमारा कोई नहीं रहता
हमारा कोई नहीं रहता
वो जिनको
सौ साल जीने का आशीर्वाद दिया
मुझसे पहले चले गए
अब आशीर्वाद नहीं
नमस्ते करती हूँ
तुम्हारे दादा जी ..
तीन बर्ष से एड़ियां रगड़ रहे है
उन्हें रोज आशीर्वाद देती हूँ
न चाहते हुए भी,
रख देती हूँ सर पे हाथ
मगर वो जाते ही नहीं
दर्द से और चीखने लगते है
और जो चले गए
उसके लिए मुझे गुनाहगार ठहराते है
तुम्हे आशीर्वाद नहीं दूंगी,
मजबूर हूँ ,
न ही कह सकती हूँ तुम्हे बेटा
न ही कह सकती हूँ तुम्हे बेटा
बस नमस्ते ही ठीक है
खुश रहो
खुश रहो
माँ ..चली जाती है
छोड़ जाती है एक प्रश्न ?
जिसका उत्तर मै इधर-उधर ढूंढता हूँ
मगर नहीं मिलता
मगर नहीं मिलता
क्योंकि मै जानता हूँ
माँ के दोनों बेटे मरे नहीं
ज़िंदा है
इसी शहर में है
उधर जहां बड़े लोग रहते है
जहा थके हुए लोगों का आना जाना नहीं होता
एड़ियां रगड़ते पिता का दर्द
टकरा कर लौट आता है
टकरा कर लौट आता है
महल के भीमकाय गेट से
और माँ
बहुत चढ़ पाई तो
और माँ
बहुत चढ़ पाई तो
तीसरी मंजिल तक ही जा पाती है
वहाँ
जहा बेटों के नौकर रहते हैं
कई कुत्तों के साथ.
-कुश्वंश
मार्मिक....
जवाब देंहटाएंनि:शब्द कर दिया आपकी रचना ने... यही हकीक़त है आज की... इंसानियत तो जैसे कहीं खो सी गई है, लेकिन माँ आज भी वही माँ है. पूत कपूत हैं पर माता कुमाता नहीं है ...
जवाब देंहटाएंदिल को छूती रचना । हिला गई ।
जवाब देंहटाएंउफ़्………निशब्द कर दिया। हिला कर रख दिया कटु सत्य ने।
जवाब देंहटाएंउफ ! अत्यंत मार्मिक दृश्य .आज के जीवन का यही यथार्थ है.
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण एवं मार्मिक प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंoh!rom rom sihar utha
जवाब देंहटाएंoh! itna drd ? maarmik !!aankhe sajal ho gai ..
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक ... माँ ऐसा कहने को मजबूर हो गयी .. ये सच में बहुत बड़ी बात है ... माँ के दर्द को बाखूबी उकेरा है आपने इस रचना में ...
जवाब देंहटाएंसारे शब्द जैसे कहीं खो गये ... व्यथित मन मां का ..नि:शब्द हूं ।
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक
जवाब देंहटाएंऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी....!
बहुत अच्छी रचना है।संवेदना और सच्चाई से भरी हुई।
जवाब देंहटाएंuff bahut hi marmik rachna. sharm aati hai aaj ki peedhi par aur unki soch par.
जवाब देंहटाएंचित्र वाली माताजी जीवित हो उठी.पाश कालोनी में एक खामोशी गूंजी- राम नाम सत्य है, लेकिन वहाँ मर कर भी कोई नहीं मरा.
जवाब देंहटाएंमाँ ..चली जाती है
जवाब देंहटाएंछोड़ जाती है एक प्रश्न ?
जिसका उत्तर मै इधर-उधर ढूंढता हूँ
मगर नहीं मिलता
क्योंकि मै जानता हूँ
माँ के दोनों बेटे मरे नहीं
ज़िंदा है
इसी शहर में है
उधर जहां बड़े लोग रहते है
जहा थके हुए लोगों का आना जाना नहीं होता
एड़ियां रगड़ते पिता का दर्द
टकरा कर लौट आता है
महल के भीमकाय गेट से
और माँ
बहुत चढ़ पाई तो
तीसरी मंजिल तक ही जा पाती है
वहाँ
जहा बेटों के नौकर रहते हैं
कई कुत्तों के साथ.
I am loving it...Bahut sundar
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आपकी यह रचना दिल को अंदर तक झकझोर कर गई वास्तविकता से भरी है यह !इसको देर से पढ़ा पढ़ते पढ़ते एक द्रश्य जो कल टीवी पर दिखा रहे थे मोदी जी अनशन से पहले अपनी माँ से आशीर्वाद ले रहे थे जो बड़ा नाट्किये लगा और माँ आशीर्वाद से ज्यादा हाथ जोड़ रही थी क्या यह आप ने भी नोटिस किया है ??आज कल सब जगह बुजुर्गों की यही हालत है चाहे अमीर हो या गरीब हो !ढलते सूरज को कोई सलाम नहीं करता !
जवाब देंहटाएंसमर्थ बेटों के द्वारा अपने असमर्थ मां-बाप की निर्दयतापूर्ण उपेक्षा- आधुनिक समाज का यही दृश्य है, चारों तरफ।
जवाब देंहटाएंनिशब्द
जवाब देंहटाएंनमस्ते ..बेटा
जवाब देंहटाएंजब एक सत्तर वर्ष की माँ ने
मेरे आगे हाँथ जोड़े
तो मेरा अस्तित्व हिल गया....
अपने आप में एक सम्पूर्ण गाथा.... मनन करने पर कहाँ कहाँ तक ले जाती है यह पंक्तियाँ.... आह...
अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना... सादर नमन.
मन को उद्वेलित करने वाली मार्मिक रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत ही मार्मिक और हृदयस्पर्शी .....
जवाब देंहटाएंक्योंकि मै जानता हूँ
जवाब देंहटाएंमाँ के दोनों बेटे मरे नहीं
ज़िंदा है
इसी शहर में है
उधर जहां बड़े लोग रहते है
जहा थके हुए लोगों का आना जाना नहीं होता
.... निशब्द कर दिया आपकी रचना ने। बहुत मार्मिक जिसने अंदर तक झकझोर दिया। सच में आँखें नम हो गईं।
भावपूर्ण एवं मार्मिक प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंदिल को छुं लिया आपकी रचना ने ... कितना घिनौना सच है ये हमारे समाज का ... क्यूँ हम रिश्तों के मामले में इतने अंधे हो चुके हैं ... क्यूँ इंसान इतना खुदगर्ज़ हो गया है ?
जवाब देंहटाएंतल्ख़ लेकिन बहुत मार्मिक रचना...
जवाब देंहटाएंनीरज
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जवाब देंहटाएंव्यक्ति कितना स्वार्थी और क्रूर होता जा रहा और माँ खुद में सिमटती जा रही है। दुखद है। लेकिन सुखद भी है बहुत कुछ क्यूंकि भारत माता के लाल (भारत भूमि पर जन्मे अनेक कुश्वंश) जो बूढी माँ का दुःख समझते हैं उनकी संख्या भी कम नहीं हैं।
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नि:शब्द ......
जवाब देंहटाएंMAIN SAMAJH HI NAHIN PAA RAHAA HUN KI KYAA KAHUN...MAIN NIRVAAK HO GAYAA HUN YAH KAVITA PADHKAR....
जवाब देंहटाएंआज के जीवन का यही यथार्थ है|बहुत मार्मिक रचना|
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी मार्मिक और सवेन्दन शील रचना है जो एक कटू सत्य है आज की जीवन शैली का, वाक़ई निशब्द करदिया आपने....
जवाब देंहटाएंufffffff.............man ko chhu gayi apki kavita...shabd nahii hai kahne ko
जवाब देंहटाएंufffffff.............man ko chhu gayi apki kavita...shabd nahii hai kahne ko
जवाब देंहटाएंBahut hi marmik
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