महेश कुशवंश

8 सितंबर 2011

कहानी तोता मैना

मैं बहुत दूर कहीं 
अक्स छोड़ आया हूँ
लौट कर महज़ बस 
खाली हाँथ आया हूँ
यादों में जो भी थे , 
जैसे भी थे
घायल पंछी
उड़ न पायें दूर कहीं , 
उनके पर क़तर आया हूँ 

कहने को नहीं  
कुछ शब्द  
जेहन में बाकी
रहा न कुछ  
तुम्हें  प्रेम का
नशा शाकी
हाँथ  खाली  है
मगर
शिखर तक अनुभूतियाँ हैं
हृदय में छिपी बैठी जो  
खालिश, 
निरी 
नजदीकियां है

चाह लूं जितना भी  , 
हो जाऊं  दूर 
रुखसत कर लूं
दूरियां कितनी भी 
दामन भर लूं
भूलती नहीं जो 
आज भी
कशिश है 
मन  में  
पिघल जायगी अब भी 
सारी बर्फ 
जमी तन में

देख लो फिर 
उन्हीं  आँखों के सपनों से  मुझे 
कुछ मुझ पे 
इनायत कर लो 
चाह लो फिर उन्ही रेशमी  
बातों से मुझे

चलो छोड़ते है 
एक बार फिर से
ओढी हुयी गंभीरता 
छेड़ते हैं  फिर  से 
उसी  जगह 
बाग़ में  
हम  और तुम 
किस्साये तोता मैना .


-कुश्वंश 





23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत उम्दा रचना | बहुत अच्छा लगा पढ़ के |

    मेरे ब्लॉग में आपका सादर आमंत्रण है-

    "मेरी कविता"

    "काव्य का संसार"
    बहुत उम्दा रचना | बहुत अच्छा लगा पढ़ के |

    मेरे ब्लॉग में आपका सादर आमंत्रण है-

    "मेरी कविता"

    "काव्य का संसार"

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी और कोमल भावनाओ से भरी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति। शब्दों और भावों का सुंदर संयोजन ....

    जवाब देंहटाएं
  4. भावमय करते शब्‍दों के साथ बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  5. बहुत सुन्दर भाव भरी प्रस्तुति।

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  6. कोमल भावनाओ से सजी सुन्दर रचना ...

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  7. बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति .....

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह....बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण मनमोहक ...

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  9. छेड़ते हैं फिर से --
    बाग़ में --
    किस्साए तोता मैना ।
    क्या बात है खुश्वंश जी ।
    ये आज की बारिस का असर लगता है ।
    बहुत बढ़िया ।

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  10. बहुत गहन अभिव्यक्ति

    झील पतवार वापस ना देगी कभी ,
    अपनी कश्ती अब अपने सहारे उठा ||....अनु

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  11. सभी सुधी जनों का अभिनन्दन , मैंने सोचा था चलो आज कुछ रेशमी होजाए, भले हल्का हो , प्रयास सराहा आभार , दाराल साहब... मन तो भीगा है.. भले बारिश न हो. अनु जी .....सच है किस्तियाँ स्वयं ही उठानी पड़ती है. सभी की सदस्यता से अभिभूत -कुश्वंश

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  12. कुश्वंश जी , थोडा हटकर लिखा आज आपने। मुझे बहुत अच्छा लगा। थोड़े किससे तोता मैना के होने ही चाहिए.

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  13. कुश्वंश जी
    वाह कितना सुन्दर लिखा है आपने, कितनी सादगी, कितना प्यार भरा जवाब नहीं इस रचना का........ बहुत खूबसूरत.......

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  14. बहुत ही खुबसूरत रचना ...

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  15. बहुत सुन्दर नेहासिक्त भावाभिव्यक्ति...ओढ़ी हुई गंभीरता को छोड़ना ही श्रेयस्कर होता है...बहुत सुन्दर...

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  16. अंतस को झकझोरती हुई बेहतरीन रचना....

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  17. यादों में जो भी थे ,
    जैसे भी थे
    घायल पंछी
    उड़ न पायें दूर कहीं ,
    उनके पर क़तर आया हूँ

    बिल्कुल ही नूतन कल्पना ,इन पंक्तियों ने सचमुच ही घायल कर दिया.मन को भीतर तक रचना छू गई.

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  18. चलो छोड़ते है
    एक बार फिर से
    ओढी हुयी गंभीरता
    छेड़ते हैं फिर से
    उसी जगह
    बाग़ में
    हम और तुम
    किस्साये तोता मैना ।

    वाह, कुश्वंश जी
    आपने तो बहुतों के दिल की बात कह दी।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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