कई शब्द मिलकर
लेते है एक आकर
उस आकार से झांकती है पंक्तिया
पंक्तियों में
संवेदनाये
संवेदनाये फिर आकार लेती है
बहते है आंसू
वो आंसू
जम जाते है जब
गालों पर
बन जाते है मोती
उस मोती को अपने पोरों पर
उठाकर
जब भी देखता हूँ मै
मुझे दिखता है ब्रम्हांड
दूर तक फैले चाँद तारे
तारों के बीच आकाश गंगा
उस गंगा से दूर एक सूर्य
सूर्य की आगोश में पृथ्वी-आकाश
पृथ्वी से झांकता
बचपन
बचपन में
खोजने लगता हूँ मैं
अपना अक्श
खुश होने की ये यात्रा
अच्छी है ना
निर्विकार, बेफिक्र संवादों से गुथी वो दुनिया
सच्ची है न
बेहद सच्ची ..
-कुश्वंश
सुन्दर अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंवाह बेह्द उम्दा भावाव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंसूर्य की आगोश में पृथ्वी-आकाश
जवाब देंहटाएंपृथ्वी से झांकता
बचपन
बचपन में
खोजने लगता हूँ मैं
अपना अक्श... wahin milta hai apna dhundhla aks
sunder abhivyakti.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ...कमाल की भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंबचपन में
जवाब देंहटाएंखोजने लगता हूँ मैं
अपना अक्स
खुश होने की ये यात्रा
अच्छी है ना
निर्विकार, बेफिक्र संवादों से गुथी वो दुनिया
सच्ची है न
बेहद सच्ची ..
सार्थक रचना....बधाई..
आँसू की एक बूँद में आपने समस्त ब्रह्मांड और जीवन चक्र के दर्शन कर लिये ! आपकी कल्पना की यह उड़ान बहुत पसंद आई ! शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंBeautiful imagination ! Touched by the emotions revealed in it.
जवाब देंहटाएंThanks foe such a deep philosophical poem. This is not only a question but an answer too that left further a seres of questions and answers in which thinkers left their past, their present and will have spend their future too,... Again thanks dear for this poem involving philosophy - religion - litretculture - science as well as astrology too. I have read twice and will read after returnig from the temple.
जवाब देंहटाएंकितना कुछ भरा हुआ है इस कविता में, आसमान सिमट आया हो मानो.
जवाब देंहटाएंGajab..
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना|
जवाब देंहटाएंरामनवमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|