महेश कुशवंश

5 अप्रैल 2011

कब उगेगा वो पेड़












कटीली झाड़ियो के मध्य
एक बीज
कहा से आ गिरा
झाड़ियाँ नहीं जान पाई
बीज ने आकार लेना शुरू किया
उसकी खुशबू
आस-पास बिखरने लगी
न उसमे कांटे थे
और न ही वो बेरंग था
उसके रूप रंग, भीनी खुशबू
ने जंगल में
हवाए बदल दी
लोग ढूदते हुए आने लगे
झाड़ियो में सुगबुगाहट हुयी
न जाने कब से
दूर-दूर तक हमारा राज्य है
फिर ये बच्चा
हमें चुनौती
झाड़ियो ने उसे घेर लिए
उसके बदन को
काटो से छलनी कर दिया
मगर वो गिरा पड़ा बढता रहा
और झाड़ियो से उचा हो गया
चीखती चिल्लाती झाडिया नीचे रह गयी
बीज बड़ा हुआ
उसकी छाया में पथिक
सुस्ताते, आराम करते
पेड़ के पास जगह बनाने को
काट देते झाडिया
बैठने को बना लिया चबूतरा
बीज और बड़ा हुआ
दिए उसने मीठे फल
लोग खोजते हुए आते उस पेड़ को
जंगल में दवाओ की पत्तिया खोजते
कुछ देर सुस्ताते
फल खाते
पेड़ को आशीर्वाद की नज़रों से देखते
और चले जाते
झाडिया, पेड़ पर ईर्षा करती
और दूसरी झाड़ियो से  उलझती
लोग आते उन्हें काट कर कांटे अलग करते
रास्ता बनाते
झाड़ियो ने सोचा
कहा से आया ये बीज
हमारे बीच गिरते ही
दूर फेक देना चाहिए था
लेकिन अब
हमारी कौम को ही खतरा हो गया
एक झाडी ने कहा
हमें भी फल देने के बारे में सोचना चाहिए 
इस पेड़ में ऐसा  क्या है ?
जो सदियों से  उगे हम नहीं कर पाए 
और कल के इस पेड़ ने  
जंगल बदल दिया
सूखी पड़ी झाड़ी ने कहा   
ये दूसरों को  देने की कला  है
दे कर , खुश  होने की कला है     
जिसने जंगल बदल दिया
मै सुन रहा था  
उस पेड़ के चबूतरे पर बैठा 
सोच रहा था 
हमारे दिलों में कब उगेगा वो पेड़  
जो बदल देगा 
कंकरीट का जंगल  
बिना परवाह किये
इस शहरी  जंगल में  उगी  झाड़ियों की 
उनके काँटों की   
उनकी इर्ष्याओ की 

-कुश्वंश   


10 टिप्‍पणियां:

  1. एक पेड़ के उगने की इच्छा में आपने आज के हालातों को बहुत सुन्दरता से पेश किया है ..जाने कब उगेगा वह पेड़ जिसके नीचे हम शांति और सद्भाव से रह सकेंगे ..चलो उम्मीद की जा सकती है ...आपका आभार इस सार्थक रचना के लिए ..!

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  2. कल के इस पेड़ ने
    जंगल बदल दिया
    सूखी पड़ी झाड़ी ने कहा
    ये दूसरों को देने की कला है
    दे कर , खुश होने की कला है
    जिसने जंगल बदल दिया...

    दूसरों को देने की कला की सहज अभिव्यक्ति...
    शुभकामनाएं !

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  3. हमारे दिलों में कब उगेगा वो पेड़
    जो बदल देगा
    कंकरीट का जंगल
    बिना परवाह किये
    इस शहरी जंगल में उगी झाड़ियों की
    उनके काँटों की
    उनकी इर्ष्याओ की
    hai hamare dil me wo ped jise hum khud khdiyon ki tarah gherker gum ker dete hain... sab hamare hi andar hai, bas prabhaw ki baat hai

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  4. वाह ...बहुत ही गहन भावों का समावेश है इस रचना में जो आज की हकीकत को बयां करती है ....।

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  5. jo log ek samuh me rah kar ek dusare ki tang khichte hai unke liye sabk aur samaj ke liye ekta ka sandesh hai .bus ese hi samaj ko jagate rahiye .bahut bahut shubhkamnaye

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  6. वास्तव में समाज तरस रहा है इस पेड़ के लिए

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  7. samyik prakhar vegmayi kavy sundar samnvay, shabdon ka srijan ka . bahut sundar . abbhar

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  8. हमारे दिलों में कब उगेगा वो पेड़
    जो बदल देगा
    कंकरीट का जंगल
    बिना परवाह किये
    इस शहरी जंगल में उगी झाड़ियों की
    उनके काँटों की
    उनकी इर्ष्याओ की

    एक बीज के माध्यम से बहुत सटीक बात कह दी है ..सुन्दर अभिव्यक्ति

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  9. आदरणीय कुश्वंश जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बहुत सुंदर भावों की इस रचना के लिए आपका आभार !
    सच है , संसार में जीने की कला ही यही है
    औरों को ख़ुशियां दे'कर ही सबका सम्मान और स्नेह पाया जा सकता है ।

    पुनः साधुवाद !
    नवरात्रि की शुभकामनाएं !

    साथ ही…

    नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
    पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

    चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाए शुभ संदेश !
    संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!

    *नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !*


    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. और कल के इस पेड़ ने
    जंगल बदल दिया
    सूखी पड़ी झाड़ी ने कहा
    ये दूसरों को देने की कला है
    दे कर, खुश होने की कला है
    जिसने जंगल बदल दिया

    जंगल है तो जीवन है।
    बहुत ही सुंदर और प्रेरक कविता।

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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