महेश कुशवंश

1 अप्रैल 2011

तुम्हे याद दिलाने











एक शाम
सूनसान सडक पर
धीमे कदमो से
चलते हुये
मुझे मिल गयी
मेरी ही शक्ल
वो मुस्कुराकर
पहले आगे निकली
फ़िर वापस मुडी
और मेरे कन्धे पकड लिये
प्रश्नवाचक मुद्रा मे ?
तुम तो ऐसे ना थे
सम्वेदनाहीन,निरन्कुश,प्रतिकारक,
अग्यानी, ह्रदयहीन
तुम्हारा ह्रदय
कब छोड गया साथ तुम्हारा
और तुम मानने लगे मन की
उगली पकड कर जिसकी
तुम चलना सीखे
उसकी आखो की रोशनी छिनी
तब कहा हो तुम
उस दर्द से दोहरे हुये जन्मदाता की उगली
कब छोड दी
याद है क्या ?
वो जिसकी गोद मे
बचते थॆ तुम मुह छुपाकर
कैसे बचते हो...!
उसकी परछाई से अब
वो जो
एक अन्जान के साथ
इस बालात्कारी युग मे
बिना ये जाने कि
कब तक निबाहोगे उसे,
चल दी थी तुम्हारे साथ
उस पन्खे से लट्की है
अभी भी
इस आशा से शायद उतार लो तुम
लेकिन मै तुम्हे क्यो बता रहा हू
तुम तो अपनी
उत्तरोत्तर प्रगति मे
कुचलते चले आये हो सब कुछ
इस सुविधाराज मॆ
तुम्हे तो ये भी याद नही
तुम्हारा भी था कोइ अक्स
मै आज भी तुम्हारे पीछे खडा हू
तुम्हे याद दिलाने
तुम्हारी जमीन,
तुम्हारा आसमान,
तुम्हारी श्वासे,
तुम्हारा ह्र्दय,
तुम्हारा देश,
तुम्हारा धर्म

19 टिप्‍पणियां:

  1. व्यक्ति के जीवन सन्दर्भों को उद्घाटित करती कविता सार्थक है ...आपका आभार

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम्हे तो ये भी याद नही
    तुम्हारा भी था कोइ अक्स
    मै आज भी तुम्हारे पीछे खडा हू
    तुम्हे याद दिलाने
    तुम्हारी जमीन,
    तुम्हारा आसमान,
    तुम्हारी श्वासे,
    तुम्हारा ह्र्दय,
    तुम्हारा देश,
    तुम्हारा धर्म
    per aah ! kitni nirmamta se tumne apni aankhen mund li hain, kaan band ker liye hain

    जवाब देंहटाएं
  3. कटु सत्य को उजागर करती रचना झकझोरती है।

    जवाब देंहटाएं
  4. मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है.... बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर ...कम से कम संवेदनाएं जिन्दा हैं ..

    जवाब देंहटाएं
  6. अपने आप को आइना दिखाती ये कविता बहुत अच्छी लगी ।

    जवाब देंहटाएं
  7. मै आज भी तुम्हारे पीछे खडा हू
    तुम्हे याद दिलाने
    तुम्हारी जमीन,
    तुम्हारा आसमान,
    तुम्हारी श्वासे,
    तुम्हारा ह्र्दय,
    तुम्हारा देश,
    तुम्हारा धर्म
    bahut sachchayee ke sath likhi hui kavita.....

    जवाब देंहटाएं
  8. .

    @--तुम तो ऐसे ना थे
    सम्वेदनाहीन,निरन्कुश,प्रतिकारक,
    अग्यानी, ह्रदयहीन....

    कुश्वंश जी , आपने लिखा था आपकी कविता में मेरे लेख का उत्तर है। यही यही उत्तर है तो आपका आभार। सुधार की बहुत ज्यादा गुंजाइश है।

    हमेशा की तरह एक उत्कृष्ट रचना । भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति ।
    बधाई।

    .

    जवाब देंहटाएं
  9. अरे ..अरे .. दिव्या जी ये क्या किया आपने, आपके द्वारा उत्तरित उद्बोधन आपके लिए कदापि नहीं हो सकते .. इस एक कारुणिक सच्चाई को स्वयं और समाज को आइना दिखने की कोशिश है बस .. आपके लिए उत्तर तो आपकी पोस्ट पर दे चूका हूँ

    जवाब देंहटाएं
  10. तुम्हे तो ये भी याद नही
    तुम्हारा भी था कोइ अक्स
    मै आज भी तुम्हारे पीछे खडा हू
    तुम्हे याद दिलाने

    बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  11. gahan arth se bhari paardarshak rachna -
    jeevan me aage badhane ka mulya kaise chukayenge ...?
    kuchh prashna ansulajhe hi rah jaayenge .
    sunder rachna ke liye badhai .

    जवाब देंहटाएं
  12. .

    Sir,

    Please do not worry. I know you have not written those adjectives for me.

    Again I praise the wonderful creation.

    Cheer up !

    .

    जवाब देंहटाएं
  13. तुम्हे तो ये भी याद नही
    तुम्हारा भी था कोइ अक्स
    मै आज भी तुम्हारे पीछे खडा हू.....

    कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना
    के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  14. तुम्हे तो ये भी याद नही
    तुम्हारा भी था कोइ अक्स
    मै आज भी तुम्हारे पीछे खडा हू
    तुम्हे याद दिलाने
    तुम्हारी जमीन,
    तुम्हारा आसमान,
    तुम्हारी श्वासे,
    तुम्हारा ह्र्दय,
    तुम्हारा देश,
    तुम्हारा धर्म
    ...
    गहन सन्देश देती बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति...नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  15. वो जिसकी गोद मे
    बचते थे तुम मुह छुपाकर
    कैसे बचते हो
    उसकी परछाई से अब

    वाह, कुश्वंश जी, बहुत बढ़िया।
    आपने तो यथार्थ को शब्दों की शक्ल दे दी है।

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में