महेश कुशवंश

30 मार्च 2011

मुझे घूरते अपने










कल रात
खुले आसमान मे
तारों को देखते हुए
मैंने सोचा
ये कौन सा आसमान है
गुजरे हुए पल का ..
हाँ वही तो है
वो चमकता तारा
बाबूजी है शायद
सारी जिन्दगी हमारी खुशियों को समेटते,  
इकठ्ठा करते
कह नहीं पाए माँ से  
हम भी जीना चाहते है
तुम्हारे साथ कुछ पल
बिना ये  सोचे की
अभी और जुटानी है रोटी-दाल
करनी है बेटी की शादी.
उधर बाबूजी से दूर
वो पास वाला  तारा माँ है
आज भी बाबूजी से असहमत
अभावो पर नहीं
अपने लिए कुछ भी न सोचने पर
दूसरों के लिए जीते
अपनी जिन्दगी नहीं जी पाए
राजनीति में क्या ?
छूट जाते है अपने
आज तो ऐसा नहीं होता 
कैसे बन्दर के मरे  बच्चे की तरह
सीने से चिपक  कर  रहता है 
सारा परिवार 
माँ ने नहीं देखा 
कैसा होता है  
कोई अपना आसमान
सिर्फ अपना 
तभी तो आसमान में भी 
बाबूजी के पास से से दूर हैं 
टिमटिमाती हुयी 
मै सोचता हूँ 
शायद  ये आता हुआ पल  है
वो दूर चलता हुआ तारा
जिसके पीछे है एक और तारा  
मुझे लगता है 
वो मै हूँ
मगर सोचता हूँ  
ये भी सच है  कि
एक ही  है आकाश गंगा 
कही दूर  धुंधले  ब्रन्हंद में  फ़ैली  
ऐसे ही वीरान छत पर  
मै भी 
पहचान खो रहा हूँ 
अपनों की आँखों मैं  मुझे 
सूनसान छत 
काला आसमान 
दूर तक फैले तारों से 
डर लगने लगता है
मैं दबे पाँव नीचे उतर आता हूँ
छत पर  कभी न जाने के लिए  
क्योकी मुझे वहा
मुझे  घूरते
अपने नज़र आने लगते है .. 

-कुश्वंश


9 टिप्‍पणियां:

  1. मैं दबे पाँव नीचे उतर आता हूँ छत से
    कभी न जाने के लिए
    क्योकी मुझे वहा
    मुझे घूरते
    अपने नज़र आने लगते है ..

    बेहतरीन शब्‍द रचना ।

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  2. ऐसे ही वीरान छत पर
    मै भी
    पहचान खो रहा हूँ
    अपनों की आँखों मैं
    मुझे सूनसान छत
    काला आसमान
    दूर तक फैले तारों से
    डर लगने लगता है
    मैं दबे पाँव नीचे उतर आता हूँ छत से
    कभी न जाने के लिए
    क्योकी मुझे वहा
    मुझे घूरते
    अपने नज़र आने लगते है ..
    nihshabd padhe jaa rahi hun ... chhat se utarte chhote bhai ki manind pakadna chahaa hai haath- daro mat, zindagi ehsaas dar ehsaas yun hi chalti hai

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  3. .

    जीवन का कोलाहल , दायित्वों का बोझ , अधूरे स्वप्न और रक्त जमा देने वाली चुप्पी अपनों की , मन में भय उत्पन्न करती है ।

    उम्दा रचना।

    .

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  4. अत्यंत भावपूर्ण कविता बेहतरीन शब्‍द रचना......वाह

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  5. बहुत सुन्दर, बेहतरीन शब्‍द रचना| धन्यवाद|

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  6. माँ ने नहीं देखा
    कैसा होता है
    कोई अपना आसमान
    सिर्फ अपना
    तभी तो आसमान में भी
    बाबूजी के पास से से दूर हैं

    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  7. आखिरी पंक्तियाँ लाजबाब लगीं.

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  8. कुश्वंश जी बहुत अच्छी रचना है .....!!

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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