हमने, आपने, सबने
पहन रखे है मुखौटे
तरह तरह के पहन रखे है मुखौटे
कोई कनखियों से देखता है और
करता है असम्मान
और कोई दूर तक
करता है पीछा
जब तक वो उसे दिखाई देती है
सड़क पर उसपर छोड़ देता है हाथ
बिना समझे
बिना जाने
क्यों पीट रही है उसे भीड़
रिश्वत लेने वालों ने खोल रखी पाठशालाएं
संस्कारित समाज बनाने की
स्त्री को सबला बनाने के होड़ मैं
किसने कितनी
सरकारी दया डकारी
हमने कोशिश भी नहीं की जानने की
किस सास ने
लडकी जन्मने के नहीं दिए ताने
शिक्षित होकर भी
अपनी ही परछाई पर
क्यों नहीं हो पाई खुश
कहा गए शिक्षा के सारे आंकड़े
जमीन पर नहीं उतरे शायद
आसमान पर हो गए है तारे
आक्ड़ेबाजों को गिनने में आशानी हो
शायद इसीलिये
आजादी के सत्तर सालों में भी
अगर अबला कैसे हो सबला
की सिर्फ बहस हो
तो हम आज़ादी के पहले ही अच्छे थे
तब बेड़ियों में जकड़े हुए भी
कितने सच्चे थे
हमारे आसपास तो नहीं थे
कमसे कम
कोई आंकड़े
आज तो जिन्दगी ही उलझ गयी है
सिर्फ आंकड़ों मैं
कुछ सरकारी
कुछ गैर सरकारी
महगाई के कम होते आकंडे
आर्थिक देश के बढ़ते आकडे
महिलाओं के साथ अपराध के भी
कम होते आंकड़े
पिछले साल से ५० कम हुए बलात्कार
कम हो रही है
दहेज़ हत्याएं
मुस्कुराओ के कम हो रहे हैं आंकड़े
यदि मुस्कुरा न सको तो
पहन लो मुखौटा
और शामिल हो जाओ
देश की उतरोत्तर प्रगति में
खादी वालों के साथ
में उठा रहा हूँ एक प्रश्न
उत्तर मिले तो मुझे भी बताना ..
-कुश्वंश
सच कहती अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंकहीं कोई उत्तर नहीं है , बस बगलें झांकनेवाले लोग हैं हर तरफ ........... जवाब जो मिलेगा तो हैरत ही होगी !
जवाब देंहटाएंयदि मुस्कुरा न सको तो
जवाब देंहटाएंपहन लो मुखौटा
और शामिल हो जाओ
देश की उतरोत्तर प्रगति में
खादी वालों के साथ
में उठा रहा हूँ एक प्रश्न
उत्तर मिले तो मुझे भी बताना ....
जीवन के सच को बड़ी खूबसूरती से अपनी कविता के माध्यम से उजागर किया है आपने।
बहुत-बहुत बधाई !
उत्तर तो मिल जाते हैं ,
जवाब देंहटाएंपर पकड़ में नहीं आते हैं.
तब तक राम भरोसे.
सलाम
आजादी के सत्तर सालों में भी
जवाब देंहटाएंअगर अबला कैसे हो सबला
की सिर्फ बहस हो
तो हम आज़ादी के पहले ही अच्छे थे
तब बेड़ियों में जकड़े हुए भी
कितने सच्चे थे
कभी कभी तो यह भी सही लगता है ...बहुत गहरी संवेदना को आपने शब्द दिए हैं आपका आभार
बहुत बढ़िया.... सच्ची अच्छी और सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंअच्छी और सशक्त रचना ...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंउत्तर की तलाश में आंकडें बिगड़ जायेंगे।
वो बेनकाब हो जायेंगे ,
मुखौटे उतर जायेंगे ,
सच देखने की कोशिश में , ५० कम नहीं ,
बल्कि १०० ज्यादा नज़र आयेंगे।
.
एक बेमिसाल लाजवाब रचना ! आंकड़ों के मकड़जाल में उलझी आम आदमी की हकीकतों को और स्त्रियों के प्रति असंवेदनशील होती जा रही समाज में व्याप्त निर्मम प्रवृत्तियों पर करारा प्रहार किया है आपने ! इतनी सुन्दर रचना के लिये मेरी बधाई स्वीकार करें !
जवाब देंहटाएंये प्रश्न तो प्रश्न ही रहेगा.
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