कल चाँद न जाने कब उगेगा
और पानी की एक बूद
पति के नाम पर
मुहैया होने देगा
प्यार तो प्यार है
क्यों चाँद से जोड़ कर
चाँद को धर्म संकट में डाल देते है
आप और हम
एक अटूट प्यार को क्यों
चाँद के भरोसे छोड़ देते है आप भी हम भी
क्यों सिर्फ स्त्रियों की होती है अग्निपरिच्चा
कोई क्यों भी नहीं देता, उत्तर भी
अग्निपरिक्चा तो दूर की बात है
ये चाँद तुमसे गुजारिश है
तुम्ही जरा जल्दी निकलना
क्योकि तुम ही हो जो समझ सकते हो
अग्निपरिक्चा झेलती
न जाने कितनो का दर्द
काश समझ सकते हम
उनकी बेमिशाल भावनाए
प्यार की अटूट परिभासाये
- महेश कुश्वंश
बहुत अच्छी प्रस्तुति|
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है।...बधाई।
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