ट्रेन में धडधडाती हुई चढ़ी
और धम्म से ऐसे बैठी
कि,
मुझसे चिपका उसका
कंधे से निचला बदन
मुझमे विताष्णा पैदा कर रहा था
न जाने कैसी, सेक्सी या नमकीन-सेक्सी बू
मुझे बार बार खिड़की कि तरफ धकेल रही थी
साथ बैठे, घोर देहाती, मसाला चबाते
अर्ध पढ़े लिखे, तथाकथित विद्यार्थी
मेरी तरफ देख भी रहे थे और मुह भी छिपा रहे थे तभी वो काली लड़की उठी और
तड से ऊपर कि सीट पर चढ़ गयी लडको ने जांघो तक , या कहू गहरे तक काली टांगे भी देख ली
वो तो और दूर तक देख लेते तभी वो चढ़ गयी
और ऊपर कि सीट पर धम्म से लेट गयी
ट्रेन चलने को थी कि
एक बुजुर्ग से भागते हुए डिब्बे में घुसे और इधर उधर देख कर
उस काली लड़की को अपने कंधो पर लगभग लाद कर
ट्रेन से नीच उतर गए
और कहते गए पगली है बाबूजी
न अपना होश , न अपने सात बच्चो का,
बाप कौन है, किसी का भी , कोई भी नहीं जानता
मै भी नहीं, इसका बाप होते हुए,
काश लड़की भगवान दे तो भूखी नजरे न दे
जो पागल को भी नहीं बक्श्ती
- महेश कुश्वंश
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