महेश कुशवंश

29 अक्तूबर 2010

जो मुझे मेरी तरह से जान सके

तुम कौन हो
शायद जानते हुए भी
नहीं जानना चाहती  मै
बहुत दिनों तक सपनो में आने के बाद
तुम कही नहीं दिखे







हा पहले तुम बहुत दीखते थे
मगर जब भी दिखे
मुझे घूरते दिखे
न जाने क्या था  तुम्हारी घूरती आँखों में  
मै समझ ही नहीं पाई
मै तुम्हे ही क्यों जानना चाहती हूँ
ये जान कर कि
 तुम मुझे घूरते क्यों हो
सिर्फ मुझे जानने का,
मुझे समझने का
तुम्हारा कोई मतलब नहीं
और उस दिन
जब मै तुम्हे जानने के लिए तुम्हे मिली
तुमने
पहले मिलन में ही क्या जानना चाह था मुझमे
शायद इसीलिए  
मै तुम्हे जानते हुए भी नहीं जानना चाहती
मुझे किसी  और को जानना होगा
जो मुझे मेरी तरह से जान सके
 वैसे ही 
जैसा मै जानना चाहती हूँ .
प्यार के लिए
कैसा जानना जरूरी है
वैसा जैसा  मै जानना चाहती हू
या फिर वैसा
जैसा जानना चाहते है
एक लड़की को सभी

- महेश कुश्वंश

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-कुश्वंश

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