महेश कुशवंश

30 अक्तूबर 2010

दिए जलाओ,

दिवाली में
दिए जलाओ,
धर-बाहर में फैले तम को
चलो मिटाओ,  
दिए जलाओ
यहाँ-वहां हर और अँधेरा,
घोर अँधेरा
शिक्छा का  उजियाला लाओ,
दिए जलाओ
हिंसा  और आतंकवाद को,  
मन में बसे  अलगाववाद को,
प्रेम प्यार की किरण दिखाओ
दिए जलाओ
भ्रष्ट हो रहे मन मंदिर में,
लालच के इस बड़ते वन  में  
संस्कृती का खून बहाओ,
दिए जलाओ
मंदिर तो बन गए बहुत हैं
राम-कृष्ण के भक्त बहुत है
सच्चे मन से उन मंदिर में
फिर से सुन्दर मूर्ति सजाओ
दिए जलाओ
राम राज्य का पाठ पढ़ो 
बस दिए जलाओ
सत्ता के इस  भूखे मन को
खुले हुए इस उघडे तन को
देश-धर्म  कि रीति बताओ
दिए जलाओ
सोचो मत  कोई और करेगा
हम ही क्यों 
पग और धरेगा 
बढ़कर आगे बात बनाओ
दिए जलाओ


-महेश कुश्वंश




 

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