महेश कुशवंश

15 अक्तूबर 2010

जीवन को घूट घूट पीने दो

छूने दो 
होंठो को,
गालो को,
बालो को.
खुलने दो
मन के
रचे बसे 
सतरंगी  तालो को
बंद आँखों के
नीले पीले रंगों को  ?
नीले नीले सपनो को,
गुलाबी-गुलाबी अपनों को.
काले काले मन को,
सफ़ेद सफ़ेद तन को.
कुछ मत करो तुम
बस,
Previewछूने दो
जीने दो
शाम होने को है
जीवन को घूट घूट पीने दो  
रक्त  की तरह
आखिरी बूंद तक

-महेश कुश्वंश-

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति .

    श्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!

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  2. बहुत प्यारी लाइन हैं ...

    छूने दो
    जीने दो
    शाम होने को है
    जीवन को घूट घूट पीने दो
    रक्त की तरह
    आखिरी बूंद तक

    जवाब देंहटाएं

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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