कौन कहता है खून के आंशू नहीं होते
कही भीतर से जब भी आते है पर
दिखाई नहीं देते
चेहरे को कई आकर दे देते है
आँखों को छिपाने की कला आने लगती है
न चाहते हुए भी
मगर छिपा नहीं पाती आंखे
अनबहे
खून के आंशू
तार-तार होते कपड़ो से झाकते जवान कद
हाथो से छिपाते-छिपाते
गिर ही जाते है खून के आंशु
और उन्हें पोछने को
हाथ छूने लगते है जवान कद
कहो कैसे बचाए
न बहाए खून के आंशु
इससे तो अच्छा है बह जाने दे
शायद आज की भूंख मर जाये
मेरी भी, उनकी भी
-महेश कुश्वंश
कही भीतर से जब भी आते है पर
दिखाई नहीं देते
चेहरे को कई आकर दे देते है
आँखों को छिपाने की कला आने लगती है
न चाहते हुए भी
मगर छिपा नहीं पाती आंखे
अनबहे
खून के आंशू
तार-तार होते कपड़ो से झाकते जवान कद
हाथो से छिपाते-छिपाते
गिर ही जाते है खून के आंशु
और उन्हें पोछने को
हाथ छूने लगते है जवान कद
कहो कैसे बचाए
न बहाए खून के आंशु
इससे तो अच्छा है बह जाने दे
शायद आज की भूंख मर जाये
मेरी भी, उनकी भी
-महेश कुश्वंश
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंश्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!