महेश कुशवंश

23 फ़रवरी 2011

कौन सा जीवन याद करूँ......










कहो आज मैं
कैसा जीवन याद करूँ,
किससे अपने
मन मंदिर की बात करूँ,
कौन है वो,  जो
समझेगा बातें मेरी,
कौन है जो
कर दे उजली, राते मेरी,
और जान ले
कुछ अपने भीगे सपने,
बचपन से जो शुरू  हुए
टुकड़े अपने, 
दहलीज किशोरी पार हुयी 
खलिहानों  में,
रंग जवानी,
तार  हुयी, दुकानों में, 
मिला एकदिन
मुठ्ठी में
सारा आकाश ,
आँचल  में भर लिया 
प्यार ,
उजला प्रकाश, 
फिर न जाने छोड़ मुझे
वो गया कहाँ,
कैसे जानू
कब बैरी हो गया जहाँ,
शब्द वाण तरकश से खाली  हुए,
चले,
कैसे-कैसे, संबोधन
हर बार मिले,
क्या मुझको
ऐसे ही  जीवन जीना था,
आँखों में आँशु भरे
जहर बस पीना था,
क्या मेरे दुःख का 
हिशाब-किताब
कही होगा,
क्या मेरे हिस्से का 
आफताब कही होगा,
गर नहीं तो कहो,
कहाँ  किससे, फरियाद करूँ
और बताओ
कौन सा जीवन याद करूँ......

-कुश्वंश






6 टिप्‍पणियां:

  1. कैसे-कैसे, संबोधन
    हर बार मिले,
    क्या मुझको
    ऐसे ही जीवन जीना था,
    आँखों में आँशु भरे
    जहर बस पीना था,

    बेहतरीन ..... सुंदर शब्द.... सार्थक सवाल ..... एक उम्दा रचना बधाई स्वीकारें

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  2. आदरणीय कुश्वंश जी
    नमस्कार !
    ...... सार्थक सवाल
    कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

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  3. मोनिका जी, संजय जी हौश्लाफ्जाई के लिए शुक्रिया, लेखनी की धार तेज और संवेदना सहित होगी ऐसा विस्वाश करें, धन्यवाद्

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  4. जीवन के यथार्थ को आपने बहुत सलीके से कविता में ढाल दिया है। बधाई।

    ---------
    ब्‍लॉगवाणी: ब्‍लॉग समीक्षा का एक विनम्र प्रयास।

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  5. बहुत मर्मस्पर्शी...सार्थक प्रश्न उठाती एक बहुत भावपूर्ण रचना..

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  6. अच्छी लगी आपकी ये कविता और अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर.

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आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

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