कोई
दावा नहीं
याद नहीं
याद नहीं
टूटे सपनों की कोई
मुराद नहीं
सोचते थे
पैरों की जमीन है बाकी
बिखरे रिश्तों में
कहीं कोई महक
कहीं कोई महक
है शाकी
आँधियों में भी जो
जलता रहा
सम्बन्ध, दिया
अंधेरों में भी जो
भटका नहीं
जुगनूं सा जिया
सोचता हूँ
कोई और जहां
कोई और जहां
तलाश करू
जा के कहीं और किसी कन्दिरा
जा के कहीं और किसी कन्दिरा
निवास करू
जितना भी चाहूं
नया दौर
यहाँ , वहाँ
जहां से बाहर
नक्षत्रों में भी नहीं अब
कोई पनाह
तुम मुझे चाह लो, फिर से
इसकी बची नहीं
उम्मीद
अब तो किसी से भी कोई
कैसी भी
फ़रयाद नहीं
यहाँ , वहाँ
जहां से बाहर
नक्षत्रों में भी नहीं अब
कोई पनाह
तुम मुझे चाह लो, फिर से
इसकी बची नहीं
उम्मीद
अब तो किसी से भी कोई
कैसी भी
फ़रयाद नहीं
बहु खूब . सुन्दर . भाब पूर्ण कबिता . बधाई .
जवाब देंहटाएंटूटे सपनों की कोई मुराद नहीं,बहुत ही सुन्दर प्रभावी कविता है आदरणीय.
जवाब देंहटाएंबहुत गहन भाव लिए रचना....
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
सपने जब टूट जाते हैं ... कोई फ़रियाद या उम्मीद नज़र नहीं आती ...
जवाब देंहटाएंगहन भाव ...
तुम मुझे चाह लो, फिर से
जवाब देंहटाएंइसकी बची नहीं
उम्मीद
अब तो किसी से भी कोई
कैसी भी
फ़रयाद नहीं___
बहुत गहन भाव लिए रचना
LATEST POSTसपना और तुम
बहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावमयी रचना...
जवाब देंहटाएंआज 15/04/2013 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की गयी हैं. आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
Gahre bhao lie sundar rachna...
जवाब देंहटाएंदावा नहीं
जवाब देंहटाएंयाद नहीं
टूटे सपनों की कोई
मुराद नहीं
सोचते थे
पैरों की जमीन है बाकी
बिखरे रिश्तों में
कहीं कोई महक
है शाकी
शब्दों में गूंथी अच्छी भावपूर्ण रचना. बधाई
बहुत ही सुन्दर रचना! मेरी बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंकृपया यहां पधार कर मुझे अनुग्रहीत करें-
http://voice-brijesh.blogspot.com
बेहद सुन्दर रचना | आभार
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
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भावमय करते शब्दों का संगम....
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