महेश कुशवंश

8 मार्च 2016

हॅप्पी वोमेंस डे


सुबह ,
बड़े तड़के उठकर
एक गोली खाली पेट खाकर भागती
स्नान ध्यान , पूजा-पाठ,
नास्ता बनाने की हड़बड़ी
और फिर खाने की तैयारी
छोटे बच्चों की परवरिश से निब्रत  होकर भी
दिनचर्या  नहीं बदल पायी उसकी
पति को आफिस भेजकर
अम्मा नासता कर लो की हुंकार लगा कर
दो रूखी रोटिया , सूखी सब्जी से
अखबार पड़ते हुये खा लेती है
दो गोलिया जो खानी है , कुछ नासते के साथ
ऊपर गंदे कपड़े मूह चिड़ाने लगते है
वो मशीन के तरफ भागती है
नीचे अभी  बिस्तर भी ठीक करना है
तभी फोने घनघनाने लगता है
हॅप्पी वोमेंस डे
वो मुह पर लंबी मुसकान ले आती है
आपको भी
अंतर्रास्ट्रीय महिला दिवस की बधाई
उसे याद आता है आज महिला दिवस है
वो मुसकुराती है
और सहेलियों को वाट्स अप्प करने बैठ जाती है
इसी बीच बेटी , बहू का भी बधाई संदेश आ जाता है
उसे समझ मे नही आता
पत्र पत्रिकाओं मे बड़ी बड़ी उपलब्धियों से सराबोर
महिलाओं के सम्मान मे कसीदे
आदर्शवादी स्लोगन और
महारानी लक्ष्मीबाई सम्मान  देते प्रधानमंत्री
यही महिला दिवस भर हैं
बेटी की शादी मे कितना खर्च करेंगे,
बहू के पहला, बेटा ही होना चाहिए,
बहू.... पहले ही बेटी है.... तुम्हारे ...... , अबकी बेटा ही चाहिए ,......
अपवित्र महिलाओं का मंदिर मे प्रवेश नहीं
धार्मिक अनुस्ठान मे  महिलाये नहीं
एक आधी आबादी को मुख्य धारा मे रोक
और तिरस्कृत करती मान्यताए
इन्हें बदलो
और
तभी सच्चे अर्थों मे
महिला दिवस मनाओ
प्रण ले
ये शुरुआत आपके
अपने आपसे
अपने घर से
अपने मोहल्ले से
अपने शहर से होनी चाहिये
अंतर्रास्त्रीय महिला दिवस
आपकी संसक्रति मे होना चाहिए
आपके दिलों मे होना चाहिए

-कुशवंश



 

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