महेश कुशवंश

10 मार्च 2016

देश से कोई भी बड़ा नहीं


हम आज़ाद हैं
देश भी आज़ाद है
देश की हवा, पानी सब आज़ाद हैं
कौन सी हवा कहाँ रोकनी है
किसको कौन सी हवा मिलनी चाहिए
किसको कौन सा पानी मिलना चाहिए
सब कुछ तय नहीं हो सकता
और न ही तय हो सकता है भविस्य
वर्तमान को घायल कर
हवाओं मे तैरते प्रश्नों के उत्तर नही हो सकते
और हर प्रश्न के उत्तर भी नहीं हो सकते
हमें अपने जन्म पर विसवास तो करना ही होगा
नहीं तो प्रकृति  की रचना से
प्रश्न कर रहे होंगे हम
जिसके उत्तर सब को रुसवाइयों मे ले जाएंगे
देश किसका नहीं है
या यूं कहूँ देश किसका है
ये कहाँ तय होगा
विस्वविद्यालयों  मे तो कदापि नहीं
शिक्षा अगर राजनीति का आखाडा बन गई
तो विद्यार्थी पहलवान तो बन जाएंगे
मगर किसी कुस्ती मे मारे जाएंगे
सबके होते है अपने आदर्श , विद्यार्थियों के तो जरूर होंगे
आक्रोश और क्रांति की राह
आदर्श तो नहीं हो सकती
ऐक स्वतंत्र रास्ट्र की अस्मिता पर प्रशन
ये क्रांति नही हो सकती
ये तो षड्यंत्र है और इसमे लगे लोगों का सज्ञान
संवैधानिक व्यवस्थाओं को लेना होगा
अभी तो ये  शुरू हुआ है
बहुत से जहरीले विषधर
अभी हाइबरनेशन मे है
मौका मिलते ही फन उठाएंगे
एक नहीं कई कन्हैया पैदा हो जाएंगे
जो  तुम पर या हम  पर ही नहीं अपनी गरीब माँ पर भी प्रश्न उठाएंगे
जन्म का हिसाब मांगेंगे
जिसका उत्तर न माँ के पास होगा
न ही पिता के पास
राजनीति की मजबूरीयाँ होंगी  शायद
सब कुछ सुनने सह लेने की, मगर
कानून को अपना काम करना चाहिए
करना ही चाहिये
देश  से कोई भी बड़ा नहीं
कोई भी

-कुशवंश

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