जननी ,जन्मभूमि
स्वर्ग से भी बड़ी है
का पाठ पढ़ते पढ़ते
न जाने कब बड़े हो गए हम
इतने बड़े
की याद ही नही रहे , मातृभूमि और स्वतन्त्रता के मायने
अभिव्यक्ति की आजादी और
व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अर्थ
बदल गई देशद्रोह की परिभाषा
हम भूल गये , माँ के आँचल की परवरिश
लावण्य और वात्सल्य का स्पर्श
और याद रह गया सिर्फ सत्ता का संघर्ष
व्यक्तिगत स्वार्थों और रक्तिम आँखों मे भरी
स्त्री की चोली
रामलीला तो दिखी
पर नहीं दिखे आदर्शों के राम
दिखी तो बस प्रेमलीला
हम आदर्शों को दर किनार कर
तलासते रहे
सिया के राम में सौंदर्यबोध
संस्कृति में ढूढते रहे खामिया
और ईजाद कर लिए प्रेम के नए अर्थ
लिव-इन -रिलेशन
आज़ादी के बदल दिये मायने
देश की प्रभुसत्ता पर वार करते आतंकवादी नहीं पहचान पाये
किताबों मे छाप दिये नए स्वतन्त्रता सेनानी
बदल दिये शिक्षा के अर्थ
विस्वविद्यालयों में आ गए आक्रांता
अब तो लगने लगा है डर,
प्रजातन्त्र से , परिवर्तित प्रजातंत्र से
सत्ता की भूंख
हमे कहीं का नही रहने देती , इतनी बढ़ जाती है कि
हम भूल जाते है माँ का चेहरा
उस माँ का
जिसने सदियों जंजीरों मे बिताए है
और न जाने कितने बेटों ने बहाया है रक्त
कलम कराई है गर्दनें
सो गए न जाने कितने बर्फ के नीचे
काटने को जंजीरें
सच है सैतालीस के बाद जन्मे बुद्धिजीवियों को
इतिहास मे रुचि लेनी चाहिए
अगर नहीं करते तो कम से कम
इतिहास को बदलने की कोसिस तो नही करनी चाहिए
कदापि नहीं करनी चाहिए
देश की संप्रभुता को बचाने
सत्तानवे प्रतिशत देशभक्त ,
भगत सिंह ,राजगुरु ,और चन्द्रशेखर आज़ाद हो जाएँगे
और तब ये तथाकथित बुद्धिजीवी
और
वोट के लिए माँ का दामन खीचते राजनीतिज्ञ
कहीं नज़र नहीं आएंगे
-कुशवंश
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