महेश कुशवंश

10 फ़रवरी 2016

क्षितिज के उस पार





मेरे घर के सामने
रहते हैं
एक विश्वविधालय  के
भूतपूर्व कुलपति
एम ए ,पीएचडी, डी-लिट
तीस हज़ार की पेंशन
सालों से बिस्तर पर लेटी
बीमार पत्नी और
प्राकृतिक  देवांग बड़ा बेटा
वो बड़े स्नेह से सहेजते हैं  उन्हे
और खुश रहते है
उनके घर मे है एक सरस्वती कक्ष
देश विदेश की करीने से सजी क्रतियाँ
ज्ञान का अद्भुत भंडार
एक कोने मे सजे है प्रशस्ति पत्र,
सोने चांदी के कप
बड़े बड़े राजनेताओं के साथ छाया चित्र
और उन छायाचित्रों मे मुसकुराते
व्यास जी 
एक और बेटा जो विदेश चला गया
और कभी नहीं आया 
व्यास जी का सबसे लायक बेटा था वो 
अब भी लायक है 
एक अमेरिकी कंपनी मे सीईओ है 
और मेक इन इंडिया का प्रबल भागीदार
बेटी भी कनाडा मे है 
विस्वविद्यालय मे है  "डीन ऑफ  सोशल रिलेशनशिप"
व्यास जी की कवितायें मुझे भाती है 
"जून की दोपहरी मे भी 
चेहरे से गिरी पसीने की बूंद  
अपनी नहीं होती 
हथेली पर गिरकर छिटक जाती है
और मुझे  विशवास दिला जाती है  
तुम्हारी हथेली मे छेद है 
और ये छेद भी मैंने ही किए है "
मैं अपने हृदय को टटोलता हूँ 
व्यास जी के संकलन को एक बार फिर 
आत्मसात करना चाहता हू 
"क्षितिज के उस पार भी मैं
और इस  पार भी "

-कुशवंश

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