कहाँ हो साईं
तुम्हारे दरबार मे
कूड़े सा मर गया मैं
और तुम चांदी का मुकुट पहने
अपने भक्तों को देते रहे सानिध्य
फूस की कुटिया मे , कभी न बुझने वाली लौ
तुम्हारे भक्तों के अंतर मे नहीं जली
वात्सल्य नही उमड़ा
किसी के भी हृदय मे
मुक्ति देने को सड़क से उठा कर
कूड़े सा भर लिया मुझे
तुम सिरडी मे नही थे शायद
किसी गरीब की झोपड़ी मे
दिये जला रहे थे तुम
बाबा तुम ठीक कहते हो
सब का साई एक
तुम्हारे दरबार मे
कूड़े सा मर गया मैं
और तुम चांदी का मुकुट पहने
अपने भक्तों को देते रहे सानिध्य
फूस की कुटिया मे , कभी न बुझने वाली लौ
तुम्हारे भक्तों के अंतर मे नहीं जली
वात्सल्य नही उमड़ा
किसी के भी हृदय मे
मुक्ति देने को सड़क से उठा कर
कूड़े सा भर लिया मुझे
तुम सिरडी मे नही थे शायद
किसी गरीब की झोपड़ी मे
दिये जला रहे थे तुम
बाबा तुम ठीक कहते हो
सब का साई एक
जेब में खनखनाते सोने चांदी के सिक्के
बाबा
तुमनें कहां चाहा था
हीरे सा मुकुट,
और इस की ओट में
सम्पन्नता के ऐसो आराम की नींद लेते
तुम्हें बन्धक बनाये भक्त
शायद उन्हें नहीं पता
तुम अब वहाँ नही रहते
और रह भी कैसे सकते हो
उस सम्वेदनहीन शहर मे
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-कुश्वंश