बहुत याद कर चुके मुझे
अब बस करो
अहिंसा की लड़ाई मेरी थी
लड़ी भी मैंने
अब तुम कहते रहो
शहीद भगत सिंह को मै
बचा सकता था
चन्द्र शेखर आज़ाद से मेरी अनबन रही
सरदार पटेल से मुह बिगड़ता था मेरा
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को
मेरे कारण छिपना पड़ा
कुछ भी कहो मैं
किसी का भी उत्तर नहीं दूंगा
जवाहर लाल नेहरू की तरफ झुकाव का भी नहीं
और अगर दूंगा भी तो क्या तुम मान लोगे
विरोध के लिए
विरोध तो करोगे ही ना
मैं गांधी........
नहीं कहता
मुझे महात्मा कहो
मुझे एक आत्मा ही रहने दो
अपनी सोच के साथ
सिर्फ एक आत्मा
मेरे ब्र्म्ह्चर्य के अर्थ कुछ भी निकालो
चस्में, लाठी और धोती
की जो चाहो पहचान बना लो
मैं आज भी वही रहूँगा
क्रशकाय , गहरी आँखों से तुम्हारी आँखों मे
अहिंसा के बीज बोता
मोहनदास करमचंद गांधी
तुम मुझे बापू कहते हो
अच्छा लगता है
मुझे रास्ट्रपिता क्यों बनाया
जब मुझसे पुत्रब्रत का व्योवहार नहीं करते
मेरी कोई बात नहीं रखते
मैंने तो नाथूराम गोडसे को उसी दिन माफ कर दिया था
जब उसने मेरे पैर छूए थे और गोली मार दी थी
तुम क्यों गड़े मुर्दे उखाड़ते हो
मुझे क्यों पेशोपेश मे डालते हो
गोडसे एक सोच का नाम था
उसने एक सोच को मार दिया
उसे अधिकार था
अपनी सोच को जाहिर करने का
अच्छा होता , मैं उसे समझता वो मुझे
तो शायद कोई गोली नहीं चलती
और न ही मैं
पार्टियों के बीच बटा होता
प्रतिवर्ष मेरा जन्म दिन मनाते हो
मेरे प्रिय भजन गाते हो
मगर गांधी को न जाने कहाँ छोड़ आते हो
मैं आज भी
वही
राजघाट पर
उसी जलती मशाल पर कातर आँखों से देखता
तुम्हें देख रहा हू
शायद तुम मुझे समझ सको
और मुझे मुक्त कर सको
आज़ाद कर सको
अपने सपनों के भारत से
सदा के लिये
हमेशा के लिये
आखिर
आत्मा की मुक्ति भी तो होनी चाहिए .......
कुशवंश
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-कुश्वंश