गंगा में तैरेते हुये पार करना
और उसमे निहित बाल सुलभ चेस्ठा ने
तुम्हें महान बना दिया
तुम्हारे मन मंदिर मे था साफ सफ़फाक हृदय
कलम दवात से पट्टी पर लिखे
मास्टर जी के शब्द
तुम्हारे मन मे कहीं दूर तक लिख गए
मानो सफ़ेद अक्षर से लिखे हों
जिन्हें
तुमने तो आत्मसात कर लिया
ये देश नहीं समझ पाया
और समझा भी तो
जानबूझकर अंजान बना रहा
तुम्हारी खिलौने सी कद- काठी ने
हिमालय छुआ
तुम्हारे विशाल हृदय मे छिपे मर्म को देश ने समझा
तुममे अपना भविस्य ढूढ़ा
तुम्हें सरताज बना दिया
तुमने माँ का कर्ज चुकाया
और दुश्मन को छठी का दूध याद दिला दिया
जय जवान -जय किसान
तुम्हारी साफ सफ़फाक छवि का
आईना बन गया
मगर तुम चले गए
विदेसी माटी पर चुपचाप
बे-आवाज़
और हम रो भी नही पाये
हमने आज तक वो आंशू सँजो कर रखे हैं
भारत माँ के सच्चे लाल
इस देश में
तुम्हें फिर आना होगा
देश की माटी का कर्ज जो बाकी है
हमपर
हमें ही चुकाना होगा
ईस्वर से विनम्र विनती है
भारत माँ को एक बार फिर वो बहादुर बेटा लौटा दे
ताकी माँ के सपूत धो सकें अपने पाप
चुका सकें आंशुओं के कर्ज
और सच्चे अर्थों मे बहा सकें
सदियों से सूखे आंशू
और ये माँ
पा सके कोई मुकाम
और हम
इस भारत के लाल पर
बहा सकें रुके आंशू
अपनी धरती पर
तुम्हारे जन्म दिन के दिन
-कुशवंश
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