महेश कुशवंश

5 जून 2015

पर्यावरण दिवस मनाएँ



पर्यावरण दिवस मनाएँ 

पेड़ों पेड़ों , पत्तों पत्तों 
भरा धुआँ 
गौरैया  हरियाली ढूँढे, 
गई कहाँ 
बूंद बूंद को तरस गए सब 
प्यासे  सारे 
निर्मल पानी से सूख गए सब
कुएं बेचारे 
कंकरीट से सीना लहूलुहान हुआ 
मानव बदला, 
पथरीला इंसान हुआ 
काटे पेड़ ,  बना  दिये नदियों पर  बाध
डर के   मारे  शेर घुसा अपनी  ही माँद 
उलट पलट दी
प्र-क्रति की  सारी व्यू रचना 
विकासवाद के शिखर पुरुष
अब कहर से बचना 
हिलती धरती , रोज रोज आया तूफान 
संकट मे पड़ती जाती है 
सबकी जान 
आओ , अपनी करनी पर शर्मिंदा हों 
पर्यावरण सम्हालें 
फिर से ,  जिंदा हो 
ऐसे ही इस धरती का हम कर्ज चुकाए
हरी भरी हो  जाये धरती 
पेड़ लगाएँ .

-कुशवंश



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