पा
एक छोटा सा शब्द
मगर अनगिनित सोपानों से आकछादित
न जाने कितने झंझावतों से
गुजरते हुये
हिमालय सी ऊचाइयों सा आडिग
बादलों से अठखेलिया करता
दुखों के परबतों से भी
शहद की नदी निकालता
पा
एक छोटा सा शब्द
जन्म देने की पीड़ा न झेलने का दंश
कभी नही भूला
और जब जब भूलने का उपक्रम किया
दोनों हाथों की उँगलियों को पकड़े
अबोधों ने कहाँ भूलने दिया
अबोध बड़े होते गये
सीने मे चुभे शूल ने हिलते डुलते
कसक देना जारी रखा
कभी समाज की संरचना उस दर्द को भूलने नहीं देती
कभी समाज का सोच
उसे भूलने का उपक्रम ही नही करने देता
पा
एक छोटा सा शब्द
कभी समाज को जड़ देता है तमाचा
कभी अपने ही खोल मे सिमटकर
समाज से मुह चुराने लगता है
मानो कोई चोरी की हो
उन अबोधों को खुशिया मुहैया कराकर
नाते, रिस्ते सारे बेमानी होने लगते है
और सब किसी न किसी खोल मे सिमटे नज़र आते है
स्वार्थ के खोल मे लिपटे
अपनों के राग मे रंगे
पा
एक छोटा सा शब्द
ब्रम्हांड़ सा ग्लोब नज़र आता है
जब उसके कंधे से कंधा मिलाये खड़ी होती है
माँ
फिर एक छोटा सा शब्द
नदी के प्रवाह सी
माँ
चट्टान सा अडिग
पा
शब्द छोटा सा ही सही .......
- कुशवंश
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