महेश कुशवंश

3 जून 2015

लालसा



सुबह का टहलना 
अनियंत्रित हृदय की धड़कनों को 
नियंत्रण मे रखना 
माशपेशियों का कार्यशील हो जाना 
शुद्ध, ताजी हवा से फेफड़े भर लेना 
और निरोग हो जाना 
धनात्मक ऊर्जा से भरा हुआ 
जब मैं उस कारीडोर से गुजरता हू 
तो न जाने क्यों बढ़ जाती है हृदय की धड़कने 
मन मे स्रजनात्मक उद्घोष 
अठखेलिया करने लगता है 
आँखें कुछ तलासने लगती है 
और ये अत्रप्त तलाश 
कई निर्जीव धमनियों मे रक्त संचार का आभाष  देने लगती है
सिकुड़ी, कोलेस्ट्रॉल की बढ़त से अटकी -अटकी चाल 
न जाने क्यों अस्थमामय लगती है 
अरे आज तो कारीडोर गुजर गया 
मै पीछे मुड़ता हू 
हृदय धौकनी सा दौड़ता है 
अनदेखे पत्थर से टकराकर गिरने से बचता हूँ 
आज मॉर्निंग वॉक का कोई फायदा नहीं हुआ 
फैट तो कुछ घटा नहीं 
हृदय और अनियंत्रित हो गया 
सोचता हू कौन सी लालसा मेरे मॉर्निंग वाल्क को
खतरे मे डालती है 
खतरा जो जीवन मरण का है 
खतरा जो  संस्कारों का है 
खतरा जो छद्म समाजिकता का  है 
ये खतरा उस सर्वभौम सत्य का भी है 
जो जीवित रहना चाहता है 
सास्वत प्रणय सा 
हृदयहीन हृदय मे भी , सदियों से  अनाम सा .....

-कुशवंश


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